अगली पीड़ी के पहले बच्चे का, पहला दिन
याद आ गया फ़ौरन जब उसकी माँ गई थी स्कूल
ख़ुशी थी रोमांच था और बच्ची भी थी बहुत कूल
पूरे बक्त ह्रदय में रही हूक दिल में थे डेरों शूल
काश उस नन्ही जान को समेट लेतीं आंचल में
ना भेजती स्कूल
पर कहाँ था यह संभव बच्ची को तो जाना ही था स्कूल
आज गई है उसकी भी बेटी- वो भी है वैसी ही कूल
कहानी फिर बहीं से शुरू होती है पर बदल गया है स्कूल
सुंदर बाताबरण ए.सी रूम नये- नाज नखरे पर है तो
वो भी स्कूल
बेटी बोली माँ बच्ची रोती है देखते ही अपना स्कूल
बड़ा दिल घबराता है जब मेड ले जाती है स्कूल
मई बोली मेरा भी दिल घबराया था जब भेजा था तुमको स्कूल
कितनी हो गई थी मई भी बेचैन घर में
मस्तिस्क था शून्य जब तुम भी गई थीं स्कूल
समय चक्र तेजी से घूमता है चाहें हो बह कूल या प्रति-कूल
इतिहास स्वयं ही दोहराता है हो चाहें हमारे अनुकूल या प्रति-कूल.
8 टिप्पणियां:
इतिहास यूं ही दोहराता है अपने आप को....
बहुत अच्छी...
इतिहास दोहराता है ...सुंदर अभिव्यक्ति
हर पीढ़ी में स्मृतियाँ दोहराती हैं।
shastri ji ke maadhyam se aapke yahaan aaana huaa....aapne school ke dino ki yaad dilaa di apni rachna se!
स्मृतियों को सहेजती सुन्दर कविता....
bahut pyari kavita....apke natin ki tarah.
नातिन का नाम क्या है जी!
मेरी ओर से नातिन को बहुत सारा प्यार और आशीर्वाद!
वाह.. बहुत सुंदर।
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