सावन की गिरती बूंदे
भिगो जाती हैं सर्वस्व तन- मन
तृप्त कर जाती हैं धरती की प्यास
और पपीहे की धड़कन
बड़ा जाती हैं सजनी की आस
पिया मिलन को धड़कता मन
प्यासे खेत में टपकती बूंदों को देख
लरजता है किसान का मन
सावन के अंधे को हरा ही दिखता है ,
चरितार्थ करता है यह सावन
गाव में झूले, भरते ताल तलैया
हुलस-हुलस उठता है मन
नीम और अमुआ पे पड़े झूले
उमंग से भर देते बालको का मन
पशु -पक्षी , नर नारी सम्पूर्ण धरा भी नाच उठती
है पाकर सावन का संग .......
भिगो जाती हैं सर्वस्व तन- मन
तृप्त कर जाती हैं धरती की प्यास
और पपीहे की धड़कन
बड़ा जाती हैं सजनी की आस
पिया मिलन को धड़कता मन
प्यासे खेत में टपकती बूंदों को देख
लरजता है किसान का मन
सावन के अंधे को हरा ही दिखता है ,
चरितार्थ करता है यह सावन
गाव में झूले, भरते ताल तलैया
हुलस-हुलस उठता है मन
नीम और अमुआ पे पड़े झूले
उमंग से भर देते बालको का मन
पशु -पक्षी , नर नारी सम्पूर्ण धरा भी नाच उठती
है पाकर सावन का संग .......
11 टिप्पणियां:
सावन की गिरती बूंदे
भिगो जाती हैं सर्वस्व तन- मन
तृप्त कर जाती हैं धरती की प्यास
और पपीहे की धड़कन
बड़ा जाती हैं सजनी की आस
पिया मिलन को धड़कता मन....हो जाता है बाबरा मन झूम उठता है वो भी पंछियों के संग ,चारों और बिखर जाते है सावन के रंग ........,,
सावन होता ही है इतना उत्साहवर्धक।
मौसम के अनुकूल सुन्दर सावन का गीत!
सावन की तो बात ही निराली है....
बहुत सुंदर...
.
आदरणीया रोशी जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
गाव में झूले, भरते ताल तलैया
हुलस-हुलस उठता है मन
नीम और अमुआ पे पड़े झूले
उमंग से भर देते बालको का मन
पशु -पक्षी , नर नारी सम्पूर्ण धरा भी नाच उठती
है पाकर सावन का संग .......
सावन का मनभावन चित्रण किया है आपने … आभार !
मेरी एक राजस्थानी रचना निम्नांकित लिंक के द्वारा पढ़ने-सुनने के लिए आमंत्रण है -
चौमासै नैं रंग है
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सावन की गिरती बूंदे
भिगो जाती हैं सर्वस्व तन- मन
तृप्त कर जाती हैं धरती की प्यास
और पपीहे की धड़कन
बड़ा जाती हैं सजनी की आस
पिया मिलन को धड़कता मन....
saawan ki bahut acchhi vyuakhya ki hai aapne
aabhar..
सुंदर कविता और मनमोहक चित्र| सावन का मज़ा ही ऐसा है भाई|
घनाक्षरी समापन पोस्ट - १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द
सावन की गिरती बूंदे
भिगो जाती हैं सर्वस्व तन- मन
तृप्त कर जाती हैं धरती की प्यास
और पपीहे की धड़कन
बड़ा जाती हैं सजनी की आस
पिया मिलन को धड़कता मन
सावन में भीगी-भीगी सी सुन्दर रचना...
saamyik saavan maah ka gungaan kartee pyaree rachana...
behad sunder shabdon me aapne sawan ka varnan kiya........thanks for coming on my blog also...
मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद... सावन की रिमझिमी फ़ुहार समेटे खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
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