हर बक्त कुछ दूंडता रहता है
अबूझे सवाल पूछता रहता है
हर पल आशंकाओ में घिरा रहता है
कुछ बुरा न हो इसी दर में जीता रहता है
क्यूंकि हो चुका है सब कुछ घटित बुरा उसके साथ
अब और कुछ न हो इसी में डूबा रहता है
क्या करे वो, कैसे संभाले इस दिल को
कुछ भी न होता जबाब है उसके पास
ये तो बस डरता रहता है, परेशा करता रहता है ..
2 टिप्पणियां:
भ्रम छोड़ें, उन्मुक्त जियें।
होता है कभी-कभी...मन को छूने वाली रचना...
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