
कब और कैसे यह भीतर समाया, कोई भी न समझ पाया
जब हुआ नव शिशु का बीज कोख में पल्लवित साथ ही यह आया
शिशु लड़का है या लड़की फ़ौरन ही घर में यह मसला गरमाया
भ्रष्टाचारी डॉक्टर ने तत्काल नोटों की गद्दी थाम लिंग बताया
गर बच गयी जान तो नवजात गर्भ से ही भ्रष्टाचार का तत्त्व लाया
नामकरण के वक्त भी पंडित, नाई, सभी के जाल में खुद को फंसा पाया
स्कूल जाने का जब मौका आया तो वहां भी भ्रस्टाचार का ही फन्दा फैला पाया
ना जाने कितने दलाल, कितने डोनेशन के बाद ही उसने ऐडमीशन पाया
बचपन बीता, भ्रस्टाचार के दलदल में जो फंसा तो जीवन भर उबर न पाया
बड़ा हुआ बालक तो कालेज, बिजनेस, जॉब भी इसी में लिप्त पाया
कोख में ही था जब उसने सुनकर, समझकर था इसको अपना पाया
नौकरी, बिजनेस सभी कुछ था इसकी नींव पर मजबूत उसने बनाया
अपना फ्यूचर, तरक्की, शान शौकत भ्रस्टाचार के साथ ही चमकाया
यह तो जीवन का वोह है मजबूत हिस्सा जिससे न कोई बच पाया
हमारे भीतर तक है नस - नस में इसका दावानल समाया
परिवार में, समाज में, देश में सभी तरफ है इसने हाहाकार मचाया
हम चाहें भी तो समूल उखाड़ फेंकना इसको कोई भी न इसका मरम जान पाया
Roshi Agarwal