सुबह पेपर में पड़ाएक युवक ने की आत्महत्या
दो दिन से था पेट खाली पोस्त्मर्तम रिपोर्ट ने यह बताया
गरीबी का था आलम की पूरा परिवार समां जाता एक गुदरी में
न सर पर था छप्पर ,न पेट में भोजन जीवन की मार्मिक त्रासदी मन को न भाई
हम बातें करते हैं २१वी सदी की ,चाँद पर जाने की सबने है जुगत भिडाई
पर वह रे मानव तुजसे तो यह इश्वर प्रदत्त धरा न सम्हाल पाया
जितना दिया तुझको उस विधाता ने पहले उसको तो तू सहेज
सर पर छेत,पेट में अन्न ,और थोडा सा वस्त्र इतना सा भी तू न सबको दे पाया
12 टिप्पणियां:
सचमुच त्रासदी ही है। कहीं कुत्ते बिस्कुट खाते हैं और कहीं भूखे बच्चे कुलबुलाते हैं/आत्महत्या करते हैं।
मार्मिक !
मार्मिक...
कटु सत्य हैं ये जीवन के..जो आपने कविता में पिरोये..
सादर.
क्या कहूं सिवा इसके की में शर्मिंदा हूँ |
यह सब सुनकर दिल दहल जाता है..
bahut hi marmi prasang ke sath bhavpoorn chintan ....badhai Roshi ji.
बहुत मार्मिक...सत्य को उजागर करती सुन्दर प्रस्तुति..
trsdi ka shbdon se rekhankan gazab ka laga....badhai roshi ji.
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
dil me ek tees si uthi ye panktiyaan padh kar,kisi ko itna mila ke smbhale nahi smbhlta aur koi gribi ki wajah se mar jata hai,pure smaaz ke liye shrm ki ghtna hai ye
सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
ये वाकई त्रासदी है!
पर वाह रे मानव तू तो यह ईश्वर प्रदत्त धरा न सम्हाल पाया....
सच कहा आपने जहाँ धरती पर हम मिल बांट कर खा भी नहीं सकते भला चाँद पर क्या करेंगे
सामयिक पोस्ट
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