मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013



क्या बोलें  ,?क्या लिखें समझ से है सब परे 
दिल और जज्बातों के पन्ने हैं सब के सब कोरे 
विष की चाशनी में लपेटकर शब्दों को परोसने की कला 
न सीख सके और रहे जिन्दगी की कक्षा में नाकामयाब 
बहु -भांति चाहा सीखना पर न हो सके कभी कामयाब 
जीने के लिए जो है बहुत जरूरी फलसफा हो गए उसमें फेल 
समेटना चाहा इस जहाँ को मुट्ठी में अपनी पर बची थी कुछ ही रेत 
सोचा बहुत ,मंथन किया पर मिला न कोई ओर और छोर  

5 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सच में उहापोह तो रहती ही है.....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सीधी, सधी और सरल, यही राह सर्वश्रेष्ठ है।

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

sundar prastuti

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...