क्या बोलें ,?क्या लिखें समझ से है सब परे
दिल और जज्बातों के पन्ने हैं सब के सब कोरे
विष की चाशनी में लपेटकर शब्दों को परोसने की कला
न सीख सके और रहे जिन्दगी की कक्षा में नाकामयाब
बहु -भांति चाहा सीखना पर न हो सके कभी कामयाब
जीने के लिए जो है बहुत जरूरी फलसफा हो गए उसमें फेल
समेटना चाहा इस जहाँ को मुट्ठी में अपनी पर बची थी कुछ ही रेत
सोचा बहुत ,मंथन किया पर मिला न कोई ओर और छोर
5 टिप्पणियां:
सच में उहापोह तो रहती ही है.....
सीधी, सधी और सरल, यही राह सर्वश्रेष्ठ है।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
sundar prastuti
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
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