बोई जाती हैं कहीं ,रोपी जाती हैं रही और कंहीं ....
किस्मत होती अच्छी ,मिलती पौधे को उपजाऊ जमीं
खिल उठता ,फल -फूल जाता पाकर उचित देखभाल
बेटियां भी अगर पाती संस्कारी परिवार ,तो दमक उठता उनका रूप
बरना तो कम पानी ,बंजर जमी में जैसे तोड़ देता दम पौधा
बेटियां भी तिल -तिल रोज मरती हैं नए परिवेश में
करनी होती है दिल से दोनों की देखभाल नए माहौल में
थोड़ी सा भी ध्यान दिया नहीं की खिलखिला उठते हैं दोनों
अच्छी फसल धान की भरती है जैसे घर किसान का
वैसे ही भर देती हैं बेटियां ससुराल का आँगन ढेर सी खुशिओं से ......
किस्मत होती अच्छी ,मिलती पौधे को उपजाऊ जमीं
खिल उठता ,फल -फूल जाता पाकर उचित देखभाल
बेटियां भी अगर पाती संस्कारी परिवार ,तो दमक उठता उनका रूप
बरना तो कम पानी ,बंजर जमी में जैसे तोड़ देता दम पौधा
बेटियां भी तिल -तिल रोज मरती हैं नए परिवेश में
करनी होती है दिल से दोनों की देखभाल नए माहौल में
थोड़ी सा भी ध्यान दिया नहीं की खिलखिला उठते हैं दोनों
अच्छी फसल धान की भरती है जैसे घर किसान का
वैसे ही भर देती हैं बेटियां ससुराल का आँगन ढेर सी खुशिओं से ......
4 टिप्पणियां:
काफी उम्दा प्रस्तुति.....
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (19-01-2014) को "तलाश एक कोने की...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1497" पर भी रहेगी...!!!
- मिश्रा राहुल
कितनी समानता है।
नारी वेदना को परिभाषित करने में सफल रचना |
सुंदर रचना !
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