शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

माए से उपजा मायका

                                    लाडली 
माई यानि माँ से ही उपजा शब्द मायका
माँ ही चिडया कि मानिद समेट लेती है अपने बच्चे
अपने लाडलों के साथ ही जीती और मरती है
बेटियों में बसती है उसकी जान , जीती है उनमें अपना आधा -अधूरा बचपन
स्वेटर की तरह ही तो रोज बुनती और उधेरती है नित नए सपने
व्याह दी जाएँ जब उसकी बेटियां तो सिर्फ आवाज़ से समझ जाती है
अपनी शहजादियों का दावानल ,उनकी पीड़ा और अब बदल जाते उसके स्वप्न
अब दूंदने में लग जाती माँ एक अदद अलादीन का चिराग
मिलते ही जिन्न से मांगे वो सिर्फ और सिर्फ अपनी लाडली का सुखमय जीवन
तभी तो माँ से ही होता मायेका और माँ से ही जीवन 

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-08-2015) को "भारत है गाँवों का देश" (चर्चा अंक-2062) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

रचना दीक्षित ने कहा…

नेक विचार.

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