रविवार, 17 फ़रवरी 2019

मासूमों का हत्यारा  

ना आँखों में तनिक अश्रुबिंद ,मस्तिस्क भी हो गया शून्य लांघ गया था वो हैवानियत की सारी सीमाएं 
ना वक़्त लगाया अपनी जान देने में ,ना सोचा तनिक मासूमों की जान लेने में 
सम्वेंदनाएं ,,क्या सब उठा कर रख दी थी ताक पर  उस  हैवान ने?
उफ़ यह आत्मघाती कदम उठाने से पहले कुछ छड़ सोचा होता उसने
बार्डर पर डट कर लोहा लेता दुश्मनों से और ,
 दी होती गर उसने अपनी जान
 तो मिलता शायद उसको देश से शहीद का सम्मान ,अंतिम यात्रा में होता देश वासियों का हुजूम ,पर क्या मिला उसको  जान गंवा कर क्योंकीबना गया वो सबकी नफरत का मजमून 

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