बासन्ती बयार ,फाल्गुनी फुहार आ ही गया रंगो का त्योहार
बगिया में अमुआ पर है छाया बौर ,कोयल के स्वर है गूँजा चहुं- ओर
गुलाल की खुशबू ने फिज़ाओं में भरने रंग कर दिये शुरू हर ओर
घर की रसोई महकी है गुझिया ,समोसे और ढेर से पकवानो की खुशबू से
कंही बच्चों की भगदड़ है मची नए वस्त्रों,जूते ,चप्पल की ख़रीदारी से
मेहमानों के स्वागत की तैयारी ,रंग ,पिचकारी से गूँजा है घर का आँगन
हर कोई व्यस्त है अपने -अपने हिसाब से बूढ़े-बच्चे हो या हो जवान
विचित्र है बहुत यह त्योहार क्यौंकी पुराने गिले-शिकवे भी करवा देता कुर्बान
गुलाल और रंग के छींटे भुला देते हैं बरसों के झगड़े,कर देते सबको एकसमान
चाहे हो मौसम का असर ,या होली की मस्ती सब ओर छाया है मस्ती का आलम
लाता है बदलाव हमारे जीवन की आपा -धापी में,फैला देता है मस्ती का शबाब
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