महिला दिवस के वास्ते पूरे वर्ष में सिर्फ एक दिन रखते हैं हम साल के 364 दिन भी हैं इसके वास्ते बहुत ही कम
नारी के हैं असंख्य रूप इसकी गड़ना भी है नामुमकिन
कभी दुर्गा ,कभी शीतला ,बन जाती है झाँसी की रानी कई दिन
माँ ,बहन ,पत्नी ,दोस्त ,बेटी जैसे अनेकों किरदार निभाती है यह प्रतिदिन
बिना किसी गिला-शिकवा हर रूप को दिल से अंजाम तक पंहुचाती है हर दिन
बेजोड़ कृति है यह ईश्वर की ,इठलाया तो खुद खुदा भी होगा इसको बनाकर
नारी के ममता ,प्रेम ,त्याग ,बलिदान की ढेरों मिसालों से रोशन है इतिहास हमारा
अपनी अस्मिता ,चरित्र ,शील -स्वभाव की रक्षा करना अब है दायित्व तुम्हारा
आधुनिकता में रंगकर अपने अस्तित्व की मर्यादा को सम्हालना है फर्ज़ तुम्हारा
रोशी--
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