यह दिल जैसी चीज़ भी खुदा ने खूब बनाई है
बड़ी -बड़ी दुश्वारियाँ झेल जाता है बड़े ही सुकून से
हल्की सी ठेस से चटख जाता है ,झट से ,चटाख से
इसका रिमोट होता है दिमाग में ,जिसमें सारी शैतानी ,हैवानियत भरी है
दिल तो बहुत कोमल ,नाज़ुक बनाया है खुदा ने ,गलती सारी दिमाग की ही है
बदनामी तो बेचारे दिल की होती है दिमाग तो पर्दे के पीछे ही सदेव रहता है
निष्कर्ष यह है कि संगत हमेशा उच्च रखो ,अपनी सहूलियत खुद परखो
जितने दुष -परिड़ाम हुए हैं उनका जिम्मेदार बेचारा यह दिल कदापि ना होता
फैसला गर खुद किया होता तो दिल इतना रुसवा ना हुआ होता ......
रोशी --
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें