बचपन से अगर सिखाया जाए सच और झूठ का फर्क ,ज्ञान ,गलत और सही
तो भावी जीवन कितना बेहतरीन हो सकता है ,सोचने की फुर्सत नहीं
माँ-बाप इतने व्यस्त हैं भौतिक जीवन में ,संस्कारों के लिए वक़्त नहीं
स्कूल -ट्यूशन लगा ज़िम्मेदारी निभाते ,बालक के साथ बैठने का वक़्त नहीं
जैसे साँचे में डालो मिट्टी आकार ले लेती है ,पर उसके लिए भी वक़्त नहीं
फिर कहते हैं आजकल बच्चे बिगड़ गए ,कुछ सुनते नहीं ,मानते नहीं फिर
जब हमको बचपन में वक़्त देना था ,तो दिया नहीं ,आज उनके पास समय नहीं
हमारा फर्ज़ पूरा करने में हमने कोताही बरती ,इस शिकायत के हम हकदार नहीं
रोशी --
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