लोग क्या कहेंगे? सरीखा जुमला बचपन से ही सुनते आए
ना बचपन में इससे पल्ला छूटा ,ना अब तक इससे दूर हो पाये
अपने बच्चों के साथ भी यही जुमला यदा -कदा इस्तेमाल करते आए
क्यौ इतनी की जमाने की फिक्र कि अपनी शकसियत ही ना पहचान पाये
खुद के लिए ना जी कर जमाने कि खुशियाँ ही सदेव तलाशते आए
ज़िंदगी के इस पड़ाव पर आकर यह जाना कि यह भी कोई जीना है
अपने वजूद से ज्यादा दुनिया को खुश करना है ,नकली मुखोटा लगा कर रहना है
अपने भीतर झाँको नकली-आवरण उखाड़ डालो और बच्चों को भी यही सिखाना है
सत्कर्म करते रहो ,उच्च विचार और नेक राह पर ईमानदारी से चलना है
लोग क्या कहेंगे? इस चक्रव्यूह में ना ऊलझ कर बेखौफ जीवन जीना है
रोशी --
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