शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

 ज़िंदगी इम्तेहान लेती है ,सौ फीसदी लेती है रोज़

हर पल दिमागी सतर्कता ,जरूरी रखना होता है रोज़
घर -गृहस्थी ,शिक्षा ,व्यापार हर छेत्र में इम्तेहान होता रोज़
सावधानी हटी,दुर्घटना घटी उक्ति इस्तेमाल होती रोज़
बड़ा मुश्किल है दैनिक रोज़मर्रा का जीवन और इसके इम्तेहान
कितनी भी सावधानी रखो ,हो जाती है कोई ना कोई चूक
भुगतना भी पड़ता है इसका खामियाजा हमको हर रोज़
सीता भी भरोसे में लांघ गयी थी लक्ष्मनरेखा एक रोज़
द्रोप्दी भी अनायास उड़ा गयी थी दुर्योधन का उपहास एक रोज़
हम रोज़ असफल होते हैं ढेरों बार ,फिर बड्ते हैं एक कदम आगे
फिर नई परीक्षा ,नए इम्तेहान देने को प्रतिदिन ,हर कदम ,हर रोज़
--रोशी
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3 टिप्‍पणियां:

Abhilasha ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना

SANDEEP KUMAR SHARMA ने कहा…

गहरी रचना।

Onkar ने कहा…

बहुत खूब

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