रविवार, 25 सितंबर 2022

 बेटियों की निश्चल,मासूम मोहब्बत के लिए पड़ जाता है हमारा यह जीवन कम

तोतली आवाज़ें ,पायल की रून-झुन जब गूँजती दिल हो जाता बाग- बाग हरदम
झट बाबा के लिए पानी का ग्लास लातीं ,माँ का दौड़ के नन्हें हाथों से सर दबाती
कभी गुड़ियौ का पिटारा खोल बैठ जातीं,कभी नन्हें हाथों से रसोई में रोटी बनातीं
कब अलमारी से माँ की चूनर ओढ़ खुद को आईने में निहारती पता ही ना चलता
कब कालेज जाने लगती? कब एकायक जवान हो जाती? महसूस ही नहीं होता
जमाने भर की दुश्वारियाँ,घर की जिम्मेदारियाँ सब चुप-चाप ओड़ लेती हैं बेटियाँ
बमुश्किल सर की चादर बचाती हैं ,और शोहदों से खुद को सहेज पातीहैं बेटियाँ
शराबी बाप ,घर की मुफ़लिसी ,आवारा भाई सब कुछ जमाने से छुपा लेती बेटियाँ
घर से विदाई के वक़्त पीहर की बरक्कत वास्ते धान बिखेर जाती हैं सदेव बेटियाँ
ससुराल के दर्द.भीतर समेट ,पति की बेबफाई का खंजर छुपा जाती हैं बेटियाँ
बेटियाँ भारी नहीं होती कभी माँ -बाप पर ,भारी होता है उनकी इज्ज़त महफ़ूज रखना जन्मदाता को
भारी होता है उनका दहेज ,,उनका ससुराल में अपमान जो मार देता बेटी के जन्मदाता को
रूह काँप जाती है माँ बाप की जब मोहल्ले में देखते कभी तेजाब से जली बेटी या ससुराल में जलाकर मारी गयी बच्ची को
ईश्वर से मांगते हैं बदनसीब जन्मदाता कि बेटी वो ना दे किसी भी गरीब को ...किसी भी गरीब को
--रोशी

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