गरबे का खुमार और संगीत का बुखार छाया हुआ है फिजा में
स्त्रियाँ लहंगा -चोली में ,पुरुष हैं दिखते पारंपरिक परिधानों में
डांडिया का है शोर विभिन्न वस्त्रों के प्रदर्शन पर है पूरा ज़ोर
अपनी डांस प्रतिभा को आजमाने का है मचा जबर्दस्त शोर
अपनी -अपनी श्रेस्ठ्ता,प्रतिभा को लगे है सब प्रदर्शित करने में
गरबा तो बनता जा रहा है एक राष्ट्रीय पर्व सम्पूर्ण राष्ट्र में चहुं ओर
इंतज़ार रहता सांझ का ,बस गूँजता पंडाल ढ़ोल -नगाड़े से हर ओर
होता था पहले सिर्फ गुजरात में गरबा अब जड़ें फ़ैल गईं हैं इसकी सर्वत्र
युवा पीड़ी थिरके इसके मधुर संगीत पर ,बच्चे ,बूड़े सभी नाचें हो के मदमस्त
--रोशी
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