ऊम्र बिता दी तजुर्बे हासिल करते -करते
हर गुजरता दिन दे जाता है नयी सीख जाते -जाते
इतने संकरे मोड़ों से गुजरी है जिन्दगी अब तक
बहुत कुछ हासिल कर लिया इस ऊम्र तक आते -आते
होती डगर सबकी टेड़ी ही होती है ,आसां नहीं यह सफ़र जिन्दगी का
शतरंज की बिसात की मानिद है जिन्दगी,शह-मात का खेल है हर रोज़
तरक्की ,यश -अपयश जन्मते ही विधना लिख देती साथ हमारे
बस कितने इम्तेहान होंगे जिन्दगी भर ये ही ना होता हाथ हमारे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें