करना चाहते हैं कुछ हो कुछ जाता है
बोलना चाहते हैं कुछ और मुख से निकल कुछ जाता है
वक़्त का तकाज़ा है या ऊम्र का हमको है ना पता
याददाश्त भी छोड़ देती है अक्सर साथ ,यादें धुंधला गयी हैं
पूछा दोस्तों से सभी एक ही राह के रही हैं ,समस्या हरेक के साथ है
कोई बीमारी ,घर -परिवार ,बच्चों या व्यापार में हैं उलझे
एक ऊम्र पर आकर सबकी गपशप ,बातों का होता एक ही आधार
मिलने लगती हैं समस्याएं ,गुफ्तगू ,ख़ुशी या गम होता एक ही आधार
कितनी समानता आ जाती है जिन्दगी में दोस्तों की एक ऊम्र तक आते -आते
इतनी आसानी से दूंढ लेते है मिनटों में हल दोस्त एक दूजे से बातों-बातों में
-- रोशी
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