औरतों का जनम ही शायद हर घडी परीक्षा वास्ते है होता
वैदिक काल से सभी ने दी अपनी-अपनी परीक्षा कोई ना बच पाया
सीता का इम्तेहान तो जग विदित है ,उर्मिला को कोई जान ना पाया
द्रोपदी बिन पूछे लगा दी गयी दांव पर ,क्या कोई पति उसको बचा पाया
व्याही गई अर्जुन संग कुंती ने पंच पांडवों की पत्नी उसको बिन आज्ञा बनाया
कदम -कदम पर नारी ही देती आई है इम्तेहान ,पुरुष की कोई परीक्षा इतिहास ना बता पाया
जन्मते ही उसका इम्तेहान होता शुरू जो ख़त्म मृत्युपरांत ही है होता ख़त्म आया
--रोशी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें