गरीबी से बड़ा कोई अभिशाप नहीं ,सहस्त्रों कुचल जाते हैं इसके तले
दीन-इमान,मान-प्रतिष्ठा सब रौंद दिए जाते हैं नित -प्रतिदिन इसके तले
मान-सम्मान चकनाचूर हो जाता चढ़ भर में ,होता हैं सर्वनाश
इसकी छाया भी कर जाती सम्पूर्ण व्यक्तित्व का मिनटों में नाश
अक्ल ,होशियारी सब रह जाती धरी की धरी ,जब होता इसका साथ
चड़ते सूरज को दुनिया जल चडाती,कोई ना देता अस्त होते का साथ
निखरने लगते हैं गुण ,काबिलियत सदेव जब पैसा आता है आपके हाथ
लाख टके की दवा,सलाह दे दे कोई फकीर ,मिला दी जाती है तुरंत खाक में
घटिया ,बेतुकी राय भी लगती बड़ी दमदार गर दी हो किसी रईस ने समाज में
--रोशी
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