शनिवार, 3 दिसंबर 2022

 आँखों पर चश्मा ,झुके कंधे ,सर के सफ़ेद बाल

आज के युवा की बदलती तस्वीर बयां करती उसका हाल
क्या हाल हुआ है हमारी युवा पीड़ी ,होते जा रहें सभी बेहाल
नौनिहालों को दीखता लगा हुआ चश्मा ,किताबों के बोझ तले कुचलता बचपन
तनाव ,दिमाग पर बोझ ,क्या खुल कर जी सकेंगे जिन्दगी के सुनहरे दिन
प्रतिस्पर्धाओं ने लील लिया है सम्पूर्ण बचपन,जीते-जी बन गए मशीन
ना भोजन ,ना खेल कूद सुबह से रात्रि तक बस दौड़ता दीखता है मासूम बचपन
जवानी रोटी,नौकरी के मकडजाल में ऐसी उलझी है,कंधे तो झुकना ही है हर दिन
कंप्यूटर ने चढ़वा दिया आँखों पर चश्मा ,बच्चों के उलझाया उनको हर दिन
बढता जिम का शौक लील रहा युवाओं को जवानी में ही ,अति हो गयी है हर दिन
विभिन्न जीने के अंदाज ,अपने शौक कोई ना रहे जिन्दगी जीने के पुराने नियम
संयमित जीवन,सात्विक आहार,व्यायाम लुप्त हो रहे,बन रहें जीने के नए नियम
--रोशी
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