भारतीय गृहणी की रोज़ नींद खुलती है सुबह दरवाज़े की या बाई की घंटी से
तत्काल उड़ जाती है नींद सपनों से बाहर आकर वो रसोई में ही रूकती है
ख्वाब उड़ जाते हैं भाप की तरह चाय का पतीला,और गैस के पास नींद खुलती है
गैस का लाईटर पति का टिफिन अधखुली आँखों से ही भारतीय नारी दूंढ लेती है
कुकर की तेज सीटी दिमाग की सभी नसों को तत्काल मिनटों में खोल देती है
आने वाले अतिथि के स्वागत का सारा मेनू होता है उसके बाएं हाथ का खेल
सीमित बजट में सबको खुश रखना जानती है गृहणी अहम् होता परिवार में रोल
परिवार का पंचिंग बैग होती है फिर भी मुस्कराहट से अपना किरदार निभाती है
रोबोट से तेज करती काम,मशीन ना कोई उसकी बराबरी कर सकती है
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