सूर्य का ताप जला रहा है हर इंसान को
एक तो स्वतः ही विश्व जल रहा है विध्वंस से
युद्ध की विभीषिका कई देशों को जला रही है
उधर आसमां से बरसते आग के शोले तडपा रहे हैं
पडोसी देशों में अराजकता विश्व को दहला रही है
जिन्दगी इतनी तकलीफदेह हो गई है ,हर कोई है लाचार
कोरोना और बीमारियों ने कर दिया है जीवन बेज़ार
क्योँ इतना पारा मौसम ,विश्व के अनेकों देशों का बड़ा हुआ है
खुदा करे रहम आसमां ,दिल ,दिमाग सर्वत्र ताप घटा दे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें