सावन की रिमझिम फुहारें ,ताप से झुलसे मन को दे जाती चैन
हरितमा से पूर्ण प्रकृति की हरी चादर आँखों को देती शीतलताऔर सुकून
पपीहे की पुकार ,बूंदों की फुहार भिगो देती है अंतर्मन भीतर तक
माटी की सौंधी खुशबू बिखर जाती है भरपूर फिजां में दूर -दूर तक
झूले पर बेटियां ,लहराती चुनरियाँ ,खनकती चूड़ियाँ उकेर रही दृश्य बेहतरीन
लहरिया ,बंधेज तो छा ही जाता है सर्वत्र ,चुनरी ,साड़ी ,लहंगा दिखता हर ओर
हरे वस्त्रों की जैसे आ जाती बाड़ , हरितमा छा जाती बहुतायत में चहुँ ओर
कवियों ने विविध भांति बखाना है इस मास को अनेकों प्रकार अपनी कविताओं में
थाह ना कोई पा सका है सावन की मस्ती ,सुकून ,आनंद की अपने अपने जीवन में
गर्म तवे पर ज्यों जल की बूँद छड मात्र दे जाती शीतलता का एहसास तप्त तवे को
सावन की फुहारें भिगो जाती तप्त ह्रदय को तवे सरीखा ,मिल जाती ठंडक तन को
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें