रविवार, 25 मई 2025

 

सहेजती रहतीं जीवन भर ढेरों चिंदी भर यादें
संवारती रहती ताउम् कुछ खुबसूरत रिश्ते
वक़्त की आंधी उड़ा ले जाती सालों की जमापूंजी झट से
शिथिल शरीर ,बढती उम्र, वक़्त ही ना मिला कभी झंझटों से
औरतों को तनिक भास भी ना होता गुजरते वक़्त की सांसों का
मशीन की मानिद खटती रहती ,ताने -बाने सुलझाती जीवन का
रोटी ,घर ,परिवार में ही गुजर जाती जिन्दगी ,मौका ना मिला सोचने का
गुडिया ,व्याह की चूनर,लाल हरी चूड़ियाँ, दोबारा मौका ना मिला देखने का

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