हर लम्हा इन्सान की फितरत के बदलते ढंग
काश हम देख पाते झांककर दिल के अंदर
क्यूंकि बहां तो दिखते ढेरो उल्हाने और बर्बाद ज़माने के रंग
जीना हो जाता मुहाल और सामाजिक ढांचा हो जाता भंग
भाई- भाई न रहता, पति- पत्नी और बच्चे
प्रेम बत्सल्या, दोस्ती के दिखते अदभुत रंग
अच्छा ही हुआ जो इस दिल को ढक दिया इश्वेर ने
बरना तो खुद इश्वेर ही न संभाल पाता
इंसानी फितरत के बदलते हर पल नए रंग ढंग
12 टिप्पणियां:
बड़े विचित्र हैं, इन्सानी रंग।
बहुत सुन्दर बधाई
bahut achchhi rachna
बहुत सही लिखा आपने.
सादर
अच्छा ही हुआ जो इस दिल को ढक दिया इश्वेर ने
बरना तो खुद इश्वेर ही न संभाल पाता
इंसानी फितरत के बदलते हर पल नए रंग ढंग
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
अच्छा ही हुआ जो इस दिल को ढक दिया इश्वेर ने
बरना तो खुद इश्वेर ही न संभाल पाता
इंसानी फितरत के बदलते हर पल नए रंग ढंग....
बहुत सच कहा है..सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
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पिछले कई दिनों से कहीं कमेंट भी नहीं कर पाया क्योंकि 3 दिन तो दिल्ली ही खा गई हमारे ब्लॉगिंग के!
अच्छा ही हुआ जो इस दिल को ढक दिया इश्वेर ने
बरना तो खुद इश्वेर ही न संभाल पाता
इंसानी फितरत के बदलते हर पल नए रंग ढंग
Bahut anoothee rachana!
शुभकामनायें आपको !
बहुत सही लिखा आपने|
अच्छा ही हुआ जो इस दिल को ढक दिया इश्वेर ने
बरना तो खुद इश्वेर ही न संभाल पाता
इंसानी फितरत के बदलते हर पल नए रंग ढंग
बहुत सही लिखा.
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