बुधवार, 25 मई 2011

नारी जीवन एक प्रश्न

बरसो बाद आज मिली वो मुझे 
बीमार, असहाय , मानसिक अवसाद से त्रस्त थी वो 
हँसना, मुस्काना खिलखिलाना गई थी वो भूल 

बुत सरीखी प्रतिमा लग रही थी वो मुझे 

स्वर्थी, शराबी, पति को गई थी वो व्याही 
बच्चो का जीवन संवारने में ही जिंदगी जीना गई थी भूल 
किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में संकोच होता था उसको 
नारी जाति पर हो रहे अत्याचारों  का साक्षात् नमूना थी वो 

जी रही थी पर बगैर साँस के , चल रही थी बगैर आस के 
घर, परिवार की इज्जत बचाए जी रही थी संग वो अपनी सास के...... 

6 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

कोमल भावों से सजी ..
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/

संजय भास्‍कर ने कहा…

BAHUT HI SHASAKT RACHNA NARI PAR

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

औरों को लिये तब जिया जाये जब उनके न्दर कुछ भी गुण हों।

Vivek Jain ने कहा…

बहुत सुंदर कविता,
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Lata agrwal ने कहा…

good

विभूति" ने कहा…

कटु सत्य है

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...