बीमार, असहाय , मानसिक अवसाद से त्रस्त थी वो
हँसना, मुस्काना खिलखिलाना गई थी वो भूल
बुत सरीखी प्रतिमा लग रही थी वो मुझे
स्वर्थी, शराबी, पति को गई थी वो व्याही
बच्चो का जीवन संवारने में ही जिंदगी जीना गई थी भूल
किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में संकोच होता था उसको
नारी जाति पर हो रहे अत्याचारों का साक्षात् नमूना थी वो
जी रही थी पर बगैर साँस के , चल रही थी बगैर आस के
घर, परिवार की इज्जत बचाए जी रही थी संग वो अपनी सास के......
6 टिप्पणियां:
कोमल भावों से सजी ..
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/
BAHUT HI SHASAKT RACHNA NARI PAR
औरों को लिये तब जिया जाये जब उनके न्दर कुछ भी गुण हों।
बहुत सुंदर कविता,
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
good
कटु सत्य है
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