सोमवार, 12 सितंबर 2011

आतंकवाद

बम का धमाका करना, आतंक फैलाना 
कितना आसन लगता है, हमारे नौजवानों को 
उपर बैठे उनके आका, पथ-भ्रष्ट करते इंसानों को
कितनी मांगें होती हैं सुनी, कितनी कोख उजडती 
ये रत्ती भर भी न होता है, गुमा उन बदमाशो को 
रोते- कलपते अनाथ बच्चे, अपनों को खोने का गम
हिला भी न पाता है, आत्मा और जमीर हैवानो का 
कभी भी न सोच पाते, ना ही सोच पाएंगे ये बेदर्द दरिन्दे 
इन्सान कहना भी इंसानियत की बेइज्जती करना होगा,
इन बहशियो को 
इन खूनी आतंकिओं की ना है कोई ,जात ना है बिरादरी 
ना है कोई अपना, ना माँ -बाप ना ही कोई रिश्तेदार 
इन्होने तो बस आतंक, बम, हत्या, खून से ही कर ली है नातेदारी 
अरे, बेबकूफ कभी तो बनाकर देखते किसी को अपना 
कुछ भी ना याद आता, भूल जाते कहर वरपाना-गर बना लेते सबको अपना ? 
ना होता कहर इतना, गर देखते वो भी सुंदर सपना, और किसी को कहते वो भी अपना ? 

21 टिप्‍पणियां:

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

रोशी जी, बहुत ही सार्थक बात कही आपने। इस सुंदर सोच को हम तक पहुंचाने काआभार।

------
क्‍यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मानवता का दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय।

केवल राम ने कहा…

इन्सान कहना भी इंसानियत की बेइज्जती करना होगा

इससे और बड़ी दुःख की बात क्या हो सकती है ....!

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

अमेरिका में पिछले 10 सालों में कोई भी बम विस्फोट नहीं हुआ है पर .................

Ankit pandey ने कहा…

Bilkul sahi kaha hai aapne.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत सही लिखा है आपने।

सादर

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत ही सार्थक बात कही है आपने। धन्यवाद|

रेखा ने कहा…

आज इन्सान अपनी इंसानियत ही खो चुका है .........

Neelkamal Vaishnaw ने कहा…

Roshi jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए..
MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
MITRA-MADHUR कृपया यहाँ चटका लगाये
BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

एकदम सही कहा.

Sunil Kumar ने कहा…

यही तो हमारा दुर्भाग्य है | जो यह कर रहे हैं वह इन्सान नहीं है |

Maheshwari kaneri ने कहा…

रोशी जी,बहुत सही लिखा है आपने। यही हमारा दुर्भाग्य है सब कुछ जानते हुए भी हम कुछ नही कर सकते........

सदा ने कहा…

बिल्‍कुल सही कहा है आपने ... ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सत्य लिखा है ... सब मजबूर हैं कुछ नहीं कर सकते ... पर हमेशा यही स्थिति नहीं रहेगी ...

Pratik Maheshwari ने कहा…

गलत और अपने मतलब के लिए तोड़ी-मरोड़ी हुई शिक्षा ही ऐसे करतूतों का कारण है.. अफ़सोस...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सच है यह सब बेहद अफसोसजनक है.....गहरी अभिव्यक्ति....

Unknown ने कहा…

Bahut hi satik aur saarthak rachna roshi ji.. Aabhar...

Minakshi Pant ने कहा…

काश ऐसा होता पर किसी की सोच कर कोई कहाँ बादल सकता है उनके लिए शायद इसी दहशत का नाम अमन है |
सुन्दर रचना |

G.N.SHAW ने कहा…

अच्छी रचना है ! "ना होता कहर इतना, गर देखते वो भी सुंदर सपना, और किसी को कहते वो भी अपना ? "- बहुत ही रहस्यमय.

Rakesh Kumar ने कहा…

अरे, बेबकूफ कभी तो बनाकर देखते किसी को अपना
कुछ भी ना याद आता, भूल जाते कहर वरपाना-गर बना लेते सबको अपना ?
ना होता कहर इतना, गर देखते वो भी सुंदर सपना, और किसी को कहते वो भी अपना ?

सुन्दर सीख देती आपकी यह कृति
आतंकवाद का यथार्थ चित्रण करती है.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,रोशी जी.

Dr Varsha Singh ने कहा…

विचारोत्तेजक आलेख....सार्थक बात .

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...