कितना आसन लगता है, हमारे नौजवानों को
उपर बैठे उनके आका, पथ-भ्रष्ट करते इंसानों को
कितनी मांगें होती हैं सुनी, कितनी कोख उजडती
ये रत्ती भर भी न होता है, गुमा उन बदमाशो को
रोते- कलपते अनाथ बच्चे, अपनों को खोने का गम
हिला भी न पाता है, आत्मा और जमीर हैवानो का
कभी भी न सोच पाते, ना ही सोच पाएंगे ये बेदर्द दरिन्दे
इन्सान कहना भी इंसानियत की बेइज्जती करना होगा,
इन बहशियो को
इन खूनी आतंकिओं की ना है कोई ,जात ना है बिरादरी
ना है कोई अपना, ना माँ -बाप ना ही कोई रिश्तेदार
इन्होने तो बस आतंक, बम, हत्या, खून से ही कर ली है नातेदारी
अरे, बेबकूफ कभी तो बनाकर देखते किसी को अपना
कुछ भी ना याद आता, भूल जाते कहर वरपाना-गर बना लेते सबको अपना ?
ना होता कहर इतना, गर देखते वो भी सुंदर सपना, और किसी को कहते वो भी अपना ?
21 टिप्पणियां:
रोशी जी, बहुत ही सार्थक बात कही आपने। इस सुंदर सोच को हम तक पहुंचाने काआभार।
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क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
मानवता का दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय।
इन्सान कहना भी इंसानियत की बेइज्जती करना होगा
इससे और बड़ी दुःख की बात क्या हो सकती है ....!
अमेरिका में पिछले 10 सालों में कोई भी बम विस्फोट नहीं हुआ है पर .................
Bilkul sahi kaha hai aapne.
बहुत सही लिखा है आपने।
सादर
बहुत ही सार्थक बात कही है आपने। धन्यवाद|
आज इन्सान अपनी इंसानियत ही खो चुका है .........
Roshi jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
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एकदम सही कहा.
यही तो हमारा दुर्भाग्य है | जो यह कर रहे हैं वह इन्सान नहीं है |
रोशी जी,बहुत सही लिखा है आपने। यही हमारा दुर्भाग्य है सब कुछ जानते हुए भी हम कुछ नही कर सकते........
बिल्कुल सही कहा है आपने ... ।
सत्य लिखा है ... सब मजबूर हैं कुछ नहीं कर सकते ... पर हमेशा यही स्थिति नहीं रहेगी ...
गलत और अपने मतलब के लिए तोड़ी-मरोड़ी हुई शिक्षा ही ऐसे करतूतों का कारण है.. अफ़सोस...
सच है यह सब बेहद अफसोसजनक है.....गहरी अभिव्यक्ति....
Bahut hi satik aur saarthak rachna roshi ji.. Aabhar...
काश ऐसा होता पर किसी की सोच कर कोई कहाँ बादल सकता है उनके लिए शायद इसी दहशत का नाम अमन है |
सुन्दर रचना |
अच्छी रचना है ! "ना होता कहर इतना, गर देखते वो भी सुंदर सपना, और किसी को कहते वो भी अपना ? "- बहुत ही रहस्यमय.
अरे, बेबकूफ कभी तो बनाकर देखते किसी को अपना
कुछ भी ना याद आता, भूल जाते कहर वरपाना-गर बना लेते सबको अपना ?
ना होता कहर इतना, गर देखते वो भी सुंदर सपना, और किसी को कहते वो भी अपना ?
सुन्दर सीख देती आपकी यह कृति
आतंकवाद का यथार्थ चित्रण करती है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,रोशी जी.
विचारोत्तेजक आलेख....सार्थक बात .
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