गुरुवार, 19 जनवरी 2012

सर्दी का मौसम


सर्दी का मौसम अमीरों को ही है भाया,बेचारे गरीब की तो वैसे ही लाचार है काया
गर्मी की मार तो वो झेल ही जाता है ,गिरते छप्पर में टूटी झोपडी में जी ही जाता है
दीवारों के सूराखों से घुसती प्रचंड वायु हिला जाती है गरीब की सम्पूर्ण काया
नस्तरों की चुभन से भी ज्यादा घायल कर जाती गरीब का तन और मन
बिना बिछावन के और बिना रजाई इस शीतल पूस की रात्रि में
कैसे जी सकता है इंसा ?..जिसने भोगाउसी का जाने तन ............
हाड कपाँदेने वाली ठण्ड में भी कैसे जिया जाता है इन गरीबो से कोई सीखे
बदन पर तार-तार हुई वस्त्र ,नस्तर चुभातीशीत वयार
हडियाँ तक कंपा जाती हैं अमीरों की बैठते हैं दिन भर जो हीटर ,अंगीठी को जलाये
पर यह लाचार खुद और परिवार समेटे काटते हैं कैसे पूस की रात ?
मर -मर के जीना फिर उठाना फिर मरना तो शायद  नियति और जिन्दगी है इनकी







13 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

marmik kavita... sardi ka sundar chitran

रेखा ने कहा…

यथार्थ को बयां करती हुई रचना ....

Nirantar ने कहा…

sardee garmee iksaar
gareeb ke liye
ek haddiyaa kanpaatee
dosree jhulsaatee
gareebee inse bhee badee traasdee hotee
achhee rachnaa roshiji

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यथार्थ सच में बड़ा ही कड़वा है..

Rakesh Kumar ने कहा…

रोशी जी,सर्दी के कहर का गरीब
पर प्रभाव होने का आपने बखूबी महसूस
कराया है.

मार्मिक प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

यही टी यथार्थ है।


सादर

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत ही बढ़िया

avanti singh ने कहा…

din ko jhkjhorne wali rachna.......

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

सजीव दृश्य हो गये, वाह !!! भावुक रंग....

ASHOK BIRLA ने कहा…

sundar manviya bhavon ko vykt kari ...sundar kavita !!
मर -मर के जीना फिर उठाना फिर मरना तो शायद नियति और जिन्दगी है इनकी
har sabd dard bayan kar rahe hai garib ka !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यथार्थ को कहती मार्मिक प्रस्तुति

Neelkamal Vaishnaw ने कहा…

आज कि दशा को बयान करती कविता
हार्दिक बधाई आपको

Admin ने कहा…

Nice blog.
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