माँ और बालक का है गर्भ से ही अटूट,अद्भुत रिश्ता
ज्यो होता नव जीवन का उदय स्वतः गढ़ जाता यह रिश्ता
बालक का पोषण,विकास सम्पूर्ण ही होता माँ पर निर्भर
माँ और बालक बन जाते एक दूजे के पूरक,और परस्पर निर्भर
दिन -प्रतिदिन पोषित होता स्वमेव यह रिश्ता, मिले ना दूजा मेल इसका
जब हो दुख -तकलीफ जीवन में आता स्वयं जुंबा पर नाम माँ ही का
सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड में है यह सच कि माँ के सिवा कोई नाम याद रहे ना किसी का
रोशी--
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें