शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

 हाड़ गला देती यह शीतल वयार काटनी मुश्किल यह पूस की रात

गर्मी में कितनी प्रिय लगती जब तन को छूती है यह शीतल बयार
सड़कें पड़ी सुनसान ,बस कभी श्वानों के भौकने की देती सुनाई आवाज़
ठंडी भट्टी में छिपकर रात काट देते निरीह प्राणी ,एकमात्र सहारा होता हर रात
भीषण कोहरा की चादर ने समेट लिया है जनजीवन को अपने आगोश में
दूर तक ना दिखता धुंध मे ,सूरज ने भी मुख मोड़ लिया है इस मौसम में
आसमान से पानी की बूंदे गिरती हैं,बर्फ मानो इकठ्ठा हो उपर आसमान में
रोज़ी -रोटी की जुगाड़ में मजदूर निकलता है घर से इतने नामाकूल मौसम में
--रोशी

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