निया भरी पड़ी है ढेरों इनायतों और महरूमियों से
कितनी खुशिओं से नवाज़े गए हमको नहीं पता रब से
पूरा दिन गुजर जाता है अपनी तकलीफों को गिनते- गिनते
दो घडी बैठो निशब्द,जिन्दगी कम पड़ जाएगी उसकी इनायेतें गिनते -गिनते
तकलीफों ,दुःख ,मजबूरियो ने गिरफ्त में जकड लिया है आम इंसान को
रब की मेहर जो है हम पर शुक्रिया सौ बार दिन में अदा करो उसको
गर देखोगे दूसरों की तकलीफें गौर से ,अपनी इनायतें लगने लगेंगी बेहिसाब
मिलेगा दिल को सुकूं गर खुशियाँ दूंढ ली खुद अपने अन्दर झांक कर बेहिसाब
रोशी
