रविवार, 14 जुलाई 2024

 

 सारी जिन्दगी फटे कपड़ों में पैबंद लगा चालाकी से दुनिया से छुपाती रहती है
राशन के खाली डिब्बों को ना जाने कहाँ से जुगाड़ से भर्ती रहती है
बच्चों ,पति को खिलाकर भूख नहीं कह हमेशा झूठ बोलती रहती है
सब्जी वाले से मुफ्त धनिया -मिर्च के लिए झिक -झिक करती आई है
परिवार पर आये संकट की खातिर चौराहे पर पीपल पर धागा बांध आती है
बच्चे की हर बीमारी का झट चुटकी में इलाज उसके पास मौजूद है
दूध -दही की व्यर्थ चिंता में जिन्दगी हर स्त्री की यूँ ही गुजर जाती है
पाई -पाई जोड़ने की खातिर रोज़ नई जुगत दूंढ ही लेती है
बच्चों की खातिर अपने शौक खवाबों को घर की अलगनी पर टांग देती है
घर की तकलीफें ,दुश्वारियां खूबसूरती से चाहरदीवारी के भीतर समेट लेती है दुनिया भर में ऐसी नायब क़ाबलियत सिर्फ और सिर्फ स्त्री में ही पाई जाती है
--रोशी

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