रविवार, 14 जुलाई 2024

 

भीषण ताप से व्यथित हो हमने मानसून की गुहार की थी प्रभु                                                                          आपने पीड़ा हमारी मिटाने के साथ तकलीफें हमारी बडा दीं प्रभु
घनघोर मेघों ने समस्त जनजीवन तितर -बितर कर दिया प्रभु
खेत खलिहान,नौकरी ,रोज़गार सब कुछ हो गया अस्तव्यस्त प्रभु
ना रही सर पर छत ,तन पर वस्त्र ,पेट में ना अन्न का दाना प्रभु
बिखर गए परिवार ,हुए बेहाल पशु -पक्षी दरक गया सब ढांचा प्रभु
बीमारी ,तकलीफों ने किया बेहाल गरीबों का लुट गया सब चैन प्रभु
कच्ची दीवारें न झेल सकीं मेघों का रौद्र रूप ,भरभराकर हुईं नेस्ताबूत प्रभु
प्रकृति की मार झेलता गरीब है कुछ तो उस पर दया करो प्रभु
--रोशी
















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