मां -बाप को नज़र के सामने अशक्त होते देखना कितना तकलीफ देह होता है जिनकी आवाज़ से चकता था घर -आँगन उनका यूं मौन हो जाना चुभता है चलना सिखाया था जिन्होंने ऊँगली पकड़ आज बिन सहारे कदम ना चलते एक एक शब्द सिखाया था जिन्होंने जतनों से आज उनका ज्यादा बोलना अखरता है जिनके हर फैसले होते थे पत्थर की लकीर आज उनका हर मशवरा बेमानी लगता है रसोई महकती थी जिनके सुस्वादु भोजन से आज कांपते हाथों से दो निवाले खाते हैं हमारे पालन पोषण में गुजार देते जो जवानी अपनी आज इतने बूड़े लगते हैं जो माँ रोज़ सजाती थी खुद को सिन्दूर और महावर से रंगों से नाता तोड़ देती है पिता जो जाते थे तैयार हो दफ्तर दो जोड़ी कपड़ों में सिमट जाते हैं उम्र का तकाज़ा,जिम्मेदारियों का बंटवारा ,नई नस्ल से अलगाव कर देता अशक्त है जन्मदाता को यूं बूडा ,लाचार ,परआश्रित देखकर दिल दिमाग परेशां होता है
रविवार, 14 जुलाई 2024
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कुम्भ है देश विदेश सम्पूर्ण दुनिया में छाया असंख्य विदेशियों ने भी आकार अपना सिर है नवाया सनातन में अपना रुझान दिखाया ,श्रधा में अपना सिर ...

-
रात का सन्नाटा था पसरा हुआ चाँद भी था अपने पुरे शबाब पर समुद्र की लहरें करती थी अठखेलियाँ पर मन पर न था उसका कुछ बस यादें अच्छी बुरी न ल...
-
आया था करवा चौथ का त्यौहार काम बाली-बाई देख चौक गए थे उसका श्रंगार पिछले कई महीनो से मारपीट, चल रही थी उसके पति से लगातार चार दिन पहले ही...
-
15th June आज है बेटे का जन्म दिन प्रफुल्लित है, आह्वावादित है तनमन जन्म दिन के साथ ही याद आता है मासूम क्रदन प्रथम स्पर्श,उस मासूम का क...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें