बस दिल से उन गरीबों का ना जाता ख्याल ,इस शीत ने ना जाने किया होगा उनका हाल जिनका ना कोई रैन-बसेरा ,उन गरीबों को कुदरत ने है मारा हाड़ गलाती है शीत बयार ,गर्म रजाई और स्वेटर भी ना हैं गर्माते बार -बार उन बदनसीबों का आता है ख्याल ,रूह भी जिनकी होती है बेज़ार पशु ,पक्षी ,इंसान सब पर है शीत ऋतु का कहर बरपाया ,खून भी है शरीर में शीत ने जमायाकुदरत के आगे है सदेव इंसा हुआ मजबूर ,झेलता आया है बरसों से उसका कहर उसकी मर्ज़ी के आगे ना किसी की है चलती जिस हाल में रखे यह है उस रब की मर्ज़ी
शनिवार, 4 जनवरी 2025
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