शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

 यह औरतें जो हैं वे बहुत कुछ जानती हैं

बचपन से माँ का चेहरा पड़ना जानती हैं
भाइयों को क्या चाहिए सब अच्छे से जानती हैं
बाबूजी आज क्यूँ खफा हैं भली भांति पहचानती है
घर में बचत का हुनर मां से खुद ही जान जाती हैं
बची रोटी को नमक के साथ निगलना जानती हैं
फटी फ्रॉक को सिलकर महीनो पहनना बाखूबी जानती हैं
अपने खचों में कटौती करना खूब जानती हैं
कम पैसों में पूरा महीना राशन खींचना जानती हैं
तार -तार हो चुकी साड़ी में इज्ज़त बचाने का हुनर खूब जानती हैं
घर की देहरी तक घर की बातें समेटना कुदरतन जानती हैं
मायके और ससुराल की सीमायें कितनी हैं यह जानती हैं
रिश्तों में तुरपाई करना भी बाखूबी जानती हैं
बिन रुके ,बिन थके गृहस्थी की गाड़ी को दौड़ना जानती हैं
एक वक़्त पर ढेरों किरदार निभाना वो सब जानती हैं
छा जाता है चहुँ और गहन अंधकार तो उम्मीद का दिया जलाना वो जानती हैं
इज्ज़त,प्रेम से रखो उसको सम्हालकर बरना चंडी का रूप रखना भी वो जानती हैं
रोशी

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