शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

 सौ फीसदी सही होते हुए भी अक्सर चुप्पी लगानी पड़ जाती है

बेबजह हंसी का नकली मुखौटा चेहरे पर चड़ाना पड़ जाता है
कभी हालात ,कभी रिश्ते ,कभी अपने संस्कारों का मोल चुकाना पड़ता है
जुबां मानो चिपक जाती है तालू से ,शब्दों को भीतर ही भींचना पड़ जाता है
भीतर होता है विचारों का तूफां,जिसको यूं ही दिल के भीतर दबाना पड़ता है
लफ्ज़ होते हैं बैचैन बाहर आने को उनको बमुश्किल समझाना पड़ता है
रिश्तों की तुरपाई के लिए है बहुत जरूरी, जुबान को भी सुई से सीना पड़ता है
रोशी
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Richa Mittal and Sweaty Agarwal

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