सौ फीसदी सही होते हुए भी अक्सर चुप्पी लगानी पड़ जाती है
बेबजह हंसी का नकली मुखौटा चेहरे पर चड़ाना पड़ जाता है
कभी हालात ,कभी रिश्ते ,कभी अपने संस्कारों का मोल चुकाना पड़ता है
जुबां मानो चिपक जाती है तालू से ,शब्दों को भीतर ही भींचना पड़ जाता है
भीतर होता है विचारों का तूफां,जिसको यूं ही दिल के भीतर दबाना पड़ता है
रिश्तों की तुरपाई के लिए है बहुत जरूरी, जुबान को भी सुई से सीना पड़ता है
रोशी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें