गुरुवार, 18 दिसंबर 2025


 जिन्दगी बहुत बेशकीमती है ,उसका भरपूर लुफ्त उठाओ

कल का पता नहीं तो आज ही क्योँ ना भरपूर दिल से जी लो
जिन्दगी एक जुआ बन कर रह गयी है हर दिन एक नेमत है रब की
एक दिन गर और मिल जाए जीने को मेहर है बहुत हम पर उस रब की
स्याह काली रात के बाद सबकी किस्मत में नहीं होता सुबह का सूरज
कब काल के पंजे दबोच ले जायें सेहतमंद काया को एकायक यूं अचानक
--रोशी


 


कोहरे की चादर ने समेट लिया निज आगोश में प्रकृति को
आकाश से मानो बर्फ गिर रही हो ,कुछ ना सूझता एक दूजे को
मात्र एक दो दिन के कोहरे से ही अस्तव्यस्त हो उठती जिन्दगी
जहाँ पूरे वर्ष रहता बर्फ,कोहरा कल्पना से परे है वो जिन्दगी
सामान्य जीवन जीते हैं वहां के निवासी ,हम घबरा उठते हैं दो चार दिन में
प्रकृति सिखा देती है जीने का तरीका सबको अलग -अलग ढंग में
--रोशी


 

मां औलाद की खातिर क्या नहीं कर गुजरती ?अपनी शख्सियत मिटा देती है
नज़र का टीका,गले में काला धागा सारे टोटके मां औलाद के लिए करती है
अनपढ़ माँ दुनिया का सारा ज्ञान बच्चे को देती है ,संस्कारों की घुट्टी पिलाती है
बेहतरीन डिज़ाइनर को पीछे छोड़ उम्दा पोशाक खुद से सिलती -बुनती है
बोलना -चलना औलाद को सिखाती है ,समाज में जीने की तहजीब सिखाती है
औलाद बड़े होकर मां को बोलना ,उठना-बैठना,सजना संवरना सिखाती है
जिस अनपढ़ ने तमाम ज्ञान बचपन में सिखाया उसको औलाद अब ज्ञान देती है
बेशुमार हुनर औलाद के वास्ते माँ सीख लेती है उसको औलाद बेबकूफ कहती है
तुमको कुछ समझ ना आयेगा यह ताना अब उसकी औलाद दिन भर देती है
मां का दिल होता नरम ,औलाद की बातों को हंस कर मां हवा में उड़ा देती है
--रोशी


 

उफ्फ,भयानक शीत लहर ,मानो समस्त हाड़ गला रही
बेघर गरीब कैसा काटता होगा पूस की रात कहर बरपा रही
बेजुबान पशु किस तकलीफ से गुजर रहे ईश्वर ही जाने उनका दुःख
टकटकी आसमां में लगाए बस सूरज की किरणों को ताक रहे भूल अपना दुःख
आसमां में छाई कोहरे की धुंध, आवागमन सिमट गया कोहरे के आगोश में
बेबजह एक्सीडेंट लील रहे कितने ही परिवारों को, कोहरे की फैली चादर में
--रोशी 

 


पत्नी को हाउसवाइफ का संबोधन ना देकर हाउसलाइफ कहना उचित होगा
घर की जान और शान है वो कोई और ना उसके बराबर मानना सही होगा
रसोई की खुशबू ,मसालों की महक है पत्नी ,दो जून के निवाले हैं उसके दम पर
कपड़ो की चमक ,चूड़ियों की खनक है पत्नी से वरना घर तो भूतों का बसेरा होगा
बच्चों की किलकारी है,आंगन की फुलवारी है पत्नी से बरना सब बंजर होगा
बुजुर्ग माँ -बाप की लाठी है पत्नी, सूने घर की रोशनी है नहीं तो बल्ब भी ना जलेगा
अतिथियों का आवागमन होता तभी जब पत्नी होती घर नहीं तो सूनसान ही रहेगा
पड़ोसियों से मेलजोल रहेगा तभी जब पत्नी होगी घर में बरना घर में सन्नाटा रहेगा
बगैर तनख्वाह-,छुट्टी के रात-दिन खटती, उसके मुकाबले दुनिया में दूजा ना होगा
--रोशी


 

कचरी,पापड़ जाड़े की धूप में छत पर बनाने का आनंद कुछ अलग था
बड़ी -मंगोड़ी तोड़ती औरतों का झुण्ड अलग ही कहानी कहता था
आलू के चिप्स तो अमीर -गरीब सबकी छतों पर बनते और सूखते थे
छोटे बच्चे से लेकर बड़ों तक पूरे परिवार सम्मलित हो जाते थे
आँगन चौबारे सब खुशबू से महकते थे,बच्चे कच्चा ही सामान खा जाते थे
भूले भटके गर कभी बानर सेना आ जाए तो मोहल्ले सारे हिल जाते थे
ना वो वक़्त रहा ,ना खाने वाले रहे ,पैकिट में चिप्स -पापड़ सिमटने लगे
हमने देखा है वो वक़्त ,याद आता है अक्सर वरना ज्यादातर परिवार अब भूल चले
--रोशी


 

छतों पर गुनगुनी धूप में स्वेटर बुनती,ऊन के गोले बनाती स्त्रियाँ ना दिखेंगी
बतियाती औरतों के हाथ सलाई पर दौड़ते ,झटपट मोजा ,टोपा बुनती ना दिखेंगी
पड़ोसन का डिजाईन एक बार में आँखों में उतार लेने की कला अब सिमट गयी
सलाई ,ऊन के गोले ,डिज़ाइन की किताबें सब रद्दी में बिक गयीं ,विलुप्त हो गयीं स्वेटर बुनने की कला प्रदर्शित करने को स्त्रियों को सर्दी का इंतजार रहता था
क्रोशिया से झट कम्बल ,स्वेटर बनाने की होड़ सारा मोहल्ला सर्दी भर करता था
बुनने के साथ उधेड़ने में पल ना लगाती थीं स्त्रियाँ ,झट नया डिजाईन बुन लेती थीं
हाथों में क्या जादू था ?आँखों से ही झट नाप लेती थीं सलाई सिरहाने रख सोती थीं
--रोशी


 

क्योँ हो जाती हैं बेटियां इतनी पराई व्याह के बाद
मां के साथ जो लडती -झगडती थी हरदम हो जाती समझदार
मां के पूछने पर बस कहती कुछ ना चाहिए बस तेरी याद आए मां बार -बार
एकाएक सयानी बन जाती है बिटिया बस खुशहाल माएका चाहिए उसको हर बार माता-पिता ,भाई का परिवार फलता -फूलता रहे यह दुआ मांगती बिटिया हर बार
मायके की देहरी पर ही आकर बेटी दुनिया की सर्व संपदा ही पा जाए हर बार
--रोशी


शीत लहर का प्रकोप घर के भीतर रजाई में दुबके इन्सान क्या जाने ?
सड़क पर फटी कथरी ,नाम मात्र के वस्त्रों में कांपते इन्सान ही जाने
कहर की रात ,एक- एक प्रहर काटना नामुमकिन वो गरीब ही जाने
भट्टी की ठंडी राख के नीचे छुपे कुत्ता- बिल्ली बेजुबान रात कैसे काटते ईश्वर जाने
बेसहारा,बेघर सूरज के आगमन की प्रतीक्षा में शीत लहर झेल जाता वो ही जाने
हाड़ गलाती शीत लहर आम इन्सान के बस में ना है झेल पाना बस वो ही जाने
हीटर ,अंगीठी के आगे भी ठिठुर रहा इन्सान ,बिना कपडे जो जिन्दा है वो ही जाने
अद्रश्य शक्ति ईश्वर ने दी है शायद गरीब को कष्ट झेलने की यह ईश्वर जाने
--रोशी
 


माँ के साथ पिता का किरदार भी बच्चे की जिन्दगी में बहुत अहम् होता है
माँ घर में परवरिश करती है पर बाप अपनी पूरी जिन्दगी दांव पर लगा देता है
दो निवालों की खातिर ,खुद को रोज़ी रोटी के लिए काम में जुट जाता है
बच्चो के सुख की खातिर अपनी जिन्दगी को पूरी की पूरी दांव पर लगा देता है
खुद से बेहतर जिन्दगी अपने बच्चों की हो इसी सपने में जिन्दगी गुजार देता है
दुनिया से लड़ जाता है नौनिहालों की खातिर अपना वजूद तक मिटा देता है
माँ के त्याग ,तपस्या को दुनिया सलाम करती है ,पिता का किरदार भुला बैठते हैं
एक गाड़ी को सही चलाने के लिए सदेव दोनों पहियों की सख्त जरुरत होती है
--roshi 
 


 

काश सिर्फ एक दिन मर्द घर- गृहस्थी औरतों की जगह सम्हाल कर देखें
सुबह अलार्म की घंटी से मशीन की माफिक भागना -दौड़ना करके देखें
बर्तन ,कपडे ,खाना ,बच्चे ,परिवार सब सम्हालती हैं फिरकी की तरह दौड़कर
चेहरे पर बिना शिकन ,बिना किसी शिकायत घर-दफ्तर सब सम्हालती हैं हंसकर
घर का राशन ,स्कूल ,शादी -व्याह किस खूबसूरती से निभाती हैं इतने मोर्चे
इतना हौसला ,जिगर दिया रब ने औरतों को एक साथ निभाने को सभी मोर्चे
प्रसव पीड़ा को बर्दाश्त कर सकती है तो सिर्फ औरत ,मर्दों के बस की बात नहीं
नौ महीने गर्भ में बच्चा लेकर घर की जिम्मेदारी सम्हाल सकना मामूली बात नहीं
--रोशी 


 

उम्र के साथ शरीर की ताक़त ,चुस्ती -फुर्ती सब ढलने लगती है
याददाश्त चींड होने लगती है ,हाथ- पाँव डगमगाने लगते हैं
सभी के साथ होता है ,यह प्रकृति का नियम है ,शरीर साथ छोड़ने लगता है
सारा जोश ,ज़ज्बा जवानी ढलते ही साथ छोड़ने लगता है ,यह ही सत्य है
जो इच्छाएं बची हों अधूरी शरीर के चुस्त रहते कर लो अवश्य पूरी
बुडापे में खुद का चलना -फिरना होता दूभर ,सभी समस्याओं से घिरे हैं पूरी
प्रदूषण,मानसिक तनाव ,बीमारियाँ चारों तरफ से घिरे हैं पहले ही हम सब
जीने का नजरिया बदलो ,खुद को स्वस्थ,खुश रखो तभी जी सकेंगें हम सब
--रोशी


 

कितना भी ईमानदारी ,शराफत ,सच्चाई से गुजारो जिन्दगी
दुनिया गलतियों के ढेर लगा देगी आपके अन्दर तमाम जिन्दगी
अच्छा दिखने के चक्कर में ना भूल जाओ खुशगवार जिन्दगी
खुद की ख़ुशी को सबसे अहम् मान भरपूर गुजारो अपनी जिन्दगी
अपनी गरिमा ,सम्मान को ना करो कभी दरकिनार ,हंसी हो जाएगी जिन्दगी
खुद से प्यार करना सीखो गैरों की वजह से ना गंवाओ यह हसीन जिन्दगी
--रोशी


 मन का सब हो जिन्दगी में यह जरुरी नहीं हर पल

बेमन से भी गुजारने होते हैं कुछ जिन्दगी के पल
दुनियादारी ,दिखावा सब करना पड़ता है जीने के लिए
चेहरे पर भरपूर मुस्कराहट भी जरुरी है दिखावे के लिए
बेशक इम्तेहान हर रोज मुश्किल देना पड़ता है दुनिया के लिए
पिछले सबक भुला देती है हर दिन की नयी परीक्षा जिन्दगी की
बस अपना तजुर्बा ,सही फैसला कामयाबी दिलाता है जिन्दगी की
--रोशी


 

एक मां में ही खुदा क्योँ ढेर सी नेमतें ,खूबियाँ डाल देता है ?
घर -परिवार ,रिश्ते ,बच्चे सब कुछ सम्हालने की ताक़त दे देता है
किस मोहब्बत से सारी औलादों को समेट लेती है आगोश में वो सिर्फ मां होती है
इन्सान हो या जानवर रब यह काबिलियत सिर्फ एक मां को ही देता है
अपने दामन में समेट मां हर मुश्किलात से अपनी औलाद को महफूज़ रखती है
तिनका -तिनका जोड़ आशियाना बनाती है अपनी औलाद के सुख की खातिर
झेल जाती है दुनिया की हर तकलीफ सिर्फ अपने बच्चों के दो निवालों की खातिर
--रोशी 


 प्यार के दो बोल दिल और दिमाग को भिगो जाते हैं

लफज़ मोहब्बत के बयां कोई भी करे ,सुकूं दे जाते हैं
पति,बच्चा ,गुरु ,दोस्त रिश्ते तो अनगिनत हैं हमारे बीच
नर्म फाया जो रख दे दिल पर वही होता दिल को अजीज़
दुनिया में नहीं कोई दवा ऐसी जो तबियत को कर दे दुरुस्त इतना जल्दी
मीठे शब्दों में होती इतनी ताक़त जो मुर्दे में भी फूंक दे जान बेशक बहुत जल्दी
--Roshi Agarwal



गैरों को शीशे में उतारने का हुनर जन्मजात होता है शायद
बातों को झट तोडना -मरोड़ना हुनर बेशकीमती होता है शायद
इतनी बेबाकी से झूट बोलने का सबब हक होता है उनका शायद
रंग बदलने में तो महारत हासिल होती है उनको बचपन से ही शायद
ऐसे प्राणी इस मजलूम दुनिया में चारों ओर बिखरे पड़े हैं बहुतायत में शायद
--रोशी


 मिटटी के दीयों की जगह ले ली चायनीस दीयों ने

पीली झालरों की जगह ले ली विदेशी झालर ने
महीनों पहले बनते स्वादिष्ट पकवानों की जगह ले ली चाकलेट ने
मठरी ,समोसे, गुझिया का स्वाद ना लिया आजकल के बच्चों ने
रंगोली ,माड़ना,अल्पना की जगह आ गए प्लास्टिक के स्टीकर
चाशनी की सुगंध ,देसी घी की खुशबू नदारद हो गयी घर से
मोमबत्ती की जगह चायनीज बत्तियां बाज़ार में बिखरा रही रोशनी हर कोने से
परिवार के कपडे,बच्चों के खिलोने बाज़ार की जगह मंगवाते अमाजान से
हलवाई ,दर्जी ,कुम्हार सरीखा तबका हो गया खाली ,गरीब और बेरोजगार
गर यूँ ही हम दूर हो गए अपनी जड़ों से ,भविष्य अंधकारमय है सबके
--रोशी 


 उपरवाला भी बेमौसमी बरसात कहर की माफिक बरसा रहा है

जब धान की फसल कटने को है बिलकुल तैयार आफत बरसा रहा है
सपने थे ,उम्मीदें थीं अनगिनत दिल में सब कुछ समेट गया यह गिरता पानी
सब ख्वाब मिटटी में दफ़न हो गए जब देखा यूँ आसमान से गिरता पानी
आसमां से गिरता पानी सबको दिखा,खून के आंसू गरीब के ना कोई देख पाया
दिवाली की मिठाई ,दिए ,फुलझड़ी बच्चों के खिलोने सब हो गए बरसात में जाया
कितनी तकलीफों से गुजर उम्मीदें सजाई थी त्यौहार की ,घर में खुशहाली की
पल में अर्श से फर्श पर पंहुचा दे ,पलों में बिगाड़ दे दुनिया किसी की
गरीब की फसल से होती है होली या दिवाली ,बरना रहते उसके हाथ हमेशा खाली
ईश्वर करे ना अनर्थ दुखियारों के साथ,मना सके यह भी ख़ुशी से होलीऔर दिवाली
--रोशी


 माता -पिता बेशक वृद्ध, असहाय हो जाएँ पर दुआओं में ना आती कमी कोई

आशीर्वादों ,दुआओं से घर फलता- फूलता,आबाद रहता कमी ना रहती कोई
धन-दौलत,प्रापर्टी बेशक ना बची हो पास अब पल्ले में कुछ भी उनके
प्रेम ,मोहब्बत के लफ्ज़ बरसते रहते हैं औलाद की खातिर मुख से उनके
शरीर कितना भी हो गया हो शिथिल ,कमजोर हमारे बुजुर्ग जन्मदाता का
आँखों में बिजली सी कौंध जाती उनके गर देखते सुख ,कामयाबी औलाद का
गुर की बातें ,तजुर्बों का भंडार है समाया बाखूबी भीतर हमारे मां -बाप के
उलझी गुत्थी को चुटकी में सुलझाने की क़ाबलियत बदस्तूर कायम है भीतर उनके
--रोशी 


 रावन को दशहरा पर सब जलाते है परम्परानुसार

भीतर का रावन कोई नहीं देखता जो है सबके भीतर
लालच ,दंभ ,कपट ,झूट सब कूट -कूट के भरें हैं सबके अन्दर
रावन के मुख तो दुनिया को दीखते थे दुनिया को भली प्रकार
रावन का कपट ,झूट ,अहंकार सब उसके चेहरे दर्शाते हैं बरसों से
इन्सान के मन का जहर सब उसके भीतर छुपा रहता है अच्छे से
हम इंसानों से अच्छा तो रावन था भीतर कुछ ना मन में रखता था
हमारे चेहरे पर कुछ ना दीखता है दिल में इन्सान विष का घड़ा रखता है
--रोशी


 

सजे हैं मां के भव्य दरबार ,गूँज रही ढोलक और मंजीरों का स्वर
मां के जयकारों-जगरातों की छाई धूम ,गरबा -डंडिया का छाया ज्वर
लहंगे और चुनरी में सजी हैं नारियां ,पुरुषों ने भी अद्भुत वेशभूषा है धारी
भक्ति ,स्तुति का छाया है रोमांच ,नवरात्रि में रामलीला का खुमार भी है भारी
नवरात्रि से हो जाता त्योहारों का आगाज़ ,सर्वत्र हर्ष ,उल्लास है व्याप्त
मन हो जाता हर्षित एक माह पूरे चलेंगे त्यौहार ,रौनक ना होगी समाप्त
--रोशी

नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
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मां दुर्गा का घर आँगन में पदार्पण ,भर देता है दैविक उर्जा अपार
भक्तिमय बन जाता है बातावरण ,शुरू हो जाते हैं त्यौहार
धूप -कपूर ,हवन सामग्री ,देसी घी की अदुतीय खुशबू फ़ैल जाती चहुँ ओर
लाल चुनरी में सज गयी मां, रूप की महिमा कही ना जाए जो है अपरम्पार
मिटटी के सकोरे में छिटके जौ के दाने बिखराते अनुपम छठा पनपकर हर बार
मां के सज गए भव्य दरबार ,गली मोहल्ले गूंजते मां के जयकारों के स्वर
श्रधा ,भक्ति में सरोबार नर नारी नवरात्री से करते त्योहारों की शुरुआत हर बार      --रोशी



 


 जन्मदिन की अशेष शुभ कामनाएं प्रिय पापा और आन्या

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हमारे छोटे से परिवार की ईश्वर प्रदत्त अनुपम सौगात हैं पापा आप
आँगन चहकता है जिससे वो रब का बेशकीमती तोहफा हैं आन्या आप
आज का दिन है बड़ा ही अद्भुत और खास ,जन्मदिन है जिनका आज एक साथ
विरल संयोग है परिवार के वरिष्ठतम और कनिष्ठतम मनाते जन्मदिवस एक साथ
ईश्वर मार्ग करे प्रशस्त ,उत्तम स्वास्थ्य ,दीर्घ आयु ,सफलता करे प्रदान दोनों को
जन्मदिन की हार्दिक शुभ कामनाएं सम्पूर्ण परिवार की तरफ से आप दोनों को
--रोशी



 घर के बुजुर्गों को जीते जी इज्ज़त और औलाद का कीमती वक़्त चाहिए

एक कमरा और दो वक़्त की रोटी ,दवा और नाममात्र का सामान चाहिए
उम्र बदने के साथ रुपया -पैसा ,ज़मीन जायदाद उनको कुछ भी ना चाहिए
फलता फूलता परिवार,नाती -पोतों की आँगन में किलकारी बस जीने को चाहिए
बेशुमार व्यंजन ,बेशकीमती लिबास ,उम्र के साथ इच्छाएं भी अब हो जाती हैं कम
उनको क्या चाहिए नज़र उठाकर कभी देखते भी नहीं उनकी जिन्दगी में हम
श्राद्ध में मनपसंद व्यंजन ,वस्त्र बांटे, जीते जी उनको अपनी पसंद परोसते रहे
माता पिता क्या पहनेगें ?बस सदेव हम उन पर अपनी ही पसंद थोपते रहे
जीते जी बुजुर्गों को इज्ज़त अपना कीमती वक़्त गर दिया होता हमने कभी
रूह से निकलती दुआओं का जखीरा भरपूर होता आज हम सबके पास अभी
--रोशी

  जिन्दगी बहुत बेशकीमती है ,उसका भरपूर लुफ्त उठाओ कल का पता नहीं तो आज ही क्योँ ना भरपूर दिल से जी लो जिन्दगी एक जुआ बन कर रह गयी है हर दिन ...