रविवार, 25 मई 2025

 

कुम्भ है देश विदेश सम्पूर्ण दुनिया में छाया
असंख्य विदेशियों ने भी आकार अपना सिर है नवाया
सनातन में अपना रुझान दिखाया ,श्रधा में अपना सिर झुकाया
दुनिया में भारत का डंका बजवाया ,सनातन की शक्ति को दिखाया
करोड़ों श्रद्धालु एकसाथ संगम पर देख कुछ देशों का दिल है घबराया
इतिहास के पन्नों में कुम्भ मेले का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज किया जा रहा है
विश्व में कुम्भ मेले का जोड़ ना दिखाई दे रहा है ,प्रतिदिन सैलाब बढता जा रहा है
देश विदेश से असंख्य यात्री संगम पर आकर प्रतिदिन अपने पाप धो रहा है
--रोशी

 

देख -सुनकर आजकल की जिन्दगी दहशत हो जाती है अक्सर
बज जाया करती हैं घंटियाँ यकायक आजकल दुनिया में रोज़
अजीबोगरीब बीमारियाँ ,तकलीफें आजकल फ़ैल गई हैं हर ओर
लाइलाज रोग बड़ते जा रहे हैं रोज़ खोज ना पाए बैज्ञानिक जिनका कोई तोड़
नई सहूलियतों के साथ रब देता है नई तकलीफें ,मुश्किलें इंसान को एक साथ
अपनी ख़ुशी ,शौक ,इच्छाओं को दफ़न ना करो ,आने वाले कल का पता नहीं
--रोशी

 

सहेजती रहतीं जीवन भर ढेरों चिंदी भर यादें
संवारती रहती ताउम् कुछ खुबसूरत रिश्ते
वक़्त की आंधी उड़ा ले जाती सालों की जमापूंजी झट से
शिथिल शरीर ,बढती उम्र, वक़्त ही ना मिला कभी झंझटों से
औरतों को तनिक भास भी ना होता गुजरते वक़्त की सांसों का
मशीन की मानिद खटती रहती ,ताने -बाने सुलझाती जीवन का
रोटी ,घर ,परिवार में ही गुजर जाती जिन्दगी ,मौका ना मिला सोचने का
गुडिया ,व्याह की चूनर,लाल हरी चूड़ियाँ, दोबारा मौका ना मिला देखने का

 

हमारी लाडली बिटिया कब इतनी बड़ी हो गई ?अकेली ही सात समंदर पार चली
बोर्ड की परीक्षा देकर स्कूल के ग्रुप के साथ ,इतनी दूर विदेश है चली
एक मज़बूत ,समझदार बेटी में तब्दील होते देखा है बचपन से उसको
पढाई के साथ खुद फैसले लेने की समझ को उसकी परखा है हमने उसको
कब बच्चियां झट से सयानी हो जाती हैं करीब से देखा और जाना है मैंने उसको
ईश्वर पथ प्रशस्त करे बिटिया का और कामयाबी ,सफलता शिद्दत से दे उसको
रोशी (नानी )

 

ना अल्लाह,ना राम ,ना रब ,ना यीशु ,ना ही श्याम
हर धर्म की खामियां दूंढने में मसरूफ है इंसान
इंसानियत का धर्म भूल हर धर्म को खंगालने में लगा पड़ा है इंसान
गर ध्यान से देखा ,समझा होता अपना धर्म यूँ ना खून बहाता इंसान
नेता ,धर्मगुरु निज स्वार्थ की खातिर विष बमन करके भड़काते इंसान
दुनिया भर में नफरत का सैलाब सिर्फ धर्म के नाम पर परोसा जा रहा है
निज नस्ल ,बिरादरी ,देश भुला कर सिर्फ धर्म के नाम पर शहीद इंसान हो रहा है
--रोशी

 



दरक रही है आपसी मोहब्बत ,तार -तार हो बिखर रहा परिवार है
पति -पत्नी का रिश्ता टूट कर अखबार की सुर्खियाँ बन रहा है
सावित्री ,सीता ,उर्मिला की कहानियां सुनी थीं बचपन से
कितनी बेदर्दी से वजूद मिटा रही हैं जीवनसाथी का झटके से
सात जन्मों का साथ मिटाने में सात लम्हे भी नहीं लगा रही हैं
प्रेमियों के चक्कर में सात फेरों की धज्जियाँ बाखूबी उड़ा रही हैं
लड़के भी निर्ममता से पत्नी का अस्तित्व जिन्दगी से मिटा रहे हैं
उफ्फ कितना भयाबह भविष्य हैं आने वाली नस्लों का हमारी
राम -सीता सरीखा दाम्पत्य बस किताबों में सिमटता जा रहा है
हमारे समाज का विघटन हमको किस युग में लेकर जा रहा है ?
--रोशी 

 

घर नज़र आता है घर जब तक रहती है उसमें औरत
रसोई महकती है,बर्तन खटकते हैं जब होती है घर में औरत
रस्सी पर दिखती है लाल,हरी चूनर,साड़ी जब होती है घर में औरत
कुछ ना कुछ आवाजें ,खटपट होती ही है जब होती है घर में औरत
बच्चे ,बुडे सब सम्हाल लेती है बाखूबी जब होती है घर में औरत
घर में जाला,कूड़े के ढेर नज़र ना आते जब घर में होती है औरत
आईने की माफिक चमकता है घर -आँगन जब घर में होती है औरत
साफ़ कपडे ,कलफ प्रेस के दिखते परिवार के जब घर में होती है औरत
घर भूतों के डेरे माफिक लगने लगता है जब उसमें ना रहती है कोई भी औरत
--रोशी

 






 झूठी -सच्ची अफवाहें सुन रहे हैं निरंतर महाकुम्भ की                                                                                           क्या सच ,क्या झूठ कोई जानकारी नहीं है महाकुम्भ की                                                                                         जो जाए वो भी पछताए कुम्भ ,जो ना जाए वो भी पछताए                                                                                     कुछ भी सच्ची असलियत ,तकलीफें सटीक ना जान पाए                                                                                         टीवी ,समाचार पत्र ,सब निज सुविधानुसार जनता को गुमराह करता जाए                                                                   मनगढ़ंत कहानियां ,किस्से सुन -सुन दिमाग की धज्जियाँ उड़ती जाए                                                                         मन की व्यथा सबकी बड़ी विचित्र दौर से है गुजर रही सभी की                                                                                एक दूजे को देख भागे जा रहे सब ,मनोदशा विचित्र चल रही सभी की

--रोशी

शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

 मौनी अमावस्या पर हुई दुखद घटना पर हार्दिक संवेदनाएं

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निकले थे घर से संगम पर स्नान करने इलाहबाद ,महाकुम्भ का पुण्य कमाने
कितनी उम्मीदों ,अरमानों के साथ निकले थे घर से वहां डुबकी लगाने
पाई-पाई जोड़ी थी बरसों से कुम्भ जाने को, बरसों का सपना साकार करने को
सपरिवार चले थे घर से अनंत यात्रा की ओर ,शायद जीवन के आखिरी तीर्थ को
लापरवाही गैरों की ,कीमत चुकानी पड़ी जान देकर कितने परिवारों को
बिचड़ गए परिवार अपनों से ,कितने बच्चे हुए यतीम मौनी अमावस्या को
--रोशी 

 मेरे देश की कहानी खुद उसकी जुबानी ....

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सोने की चिड़िया के नाम से था में विश्व में जाना जाता
मुगलों ने ,काफिरों ने था मुझको सदेव खूब लूटा- खसोटा
मेंने था बमुश्किल खुद को बड़े कष्टों तकलीफों से समेटा
मेरे परिवार का विभाजन कर डाला ,मेरी आत्मा को विदीर्ण किया
हिकारत से थे जो देखते मुझको पडोसी मुल्क उनको है मेरी सुध आई
जल ,थल ,नभ सब कुछ है मुट्ठी में मेरी,कोई मुश्किल ना मुझको रोक पाई
बेशक सभी कौमें लड़ें आपस में पर सीमा पर हैं मुस्तैद एकजुट सदेव सभी भाई
पनाह मांग रहे पडोसी मुल्क मुझसे ऐसी शख्सियत मुश्किल से है अब मैंने पाई
विश्व में है लहराता मेरा परचम ,अंतरिक्ष में भी अपनी मैंने अब धाक है जमाई
सौदर्य ,शिक्षा ,सिनेमा ,हर छेत्र में है मेरी अब पताका ,शोहरत बुलंदी से छाई
सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा यह ही धुन आज सब की जुबां पर छाई
--रोशी



 पर्यटन ,देशाटन देते हैं जिन्दगी को बेहतरीन रंग

परिवार,मित्रों के साथ गुजारा वक़्त दे जाता बहुरंग
रोज़मर्रा की जिन्दगी सबकी गुजरती उलझनों के संग
अनिद्रा ,अवसाद की गिरफ्त में फंसे हुए हैं हम सब
बीमारियों ने समेट लिया है सबको अपने आगोश में
कुछ लम्हे दे जाते हैं नव चेतना सिकुड़ती सिमटती जिन्दगी में
अपनी ख़ुशी के लिए कुछ वक़्त है बहुत जरुरी जिन्दगी में
--रोशी



 सहनशीलता ,सामंजस्य ,धैर्य समाप्त होता जा रहा है आजकल के युवा पीड़ी में

पति -पत्नी ,भाई -बहन बाप -बेटा हर रिश्ता बेमानी होता जा रहा है कलयुग में
आदर , मान- सम्मान सब पुरानी बातें होती जा रही हैं ,लुप्त होती जा रही हैं
ना तो सुनना कभी सीखा नहीं शायद बचपन से ही सब ख्वाहिश पूरी हो जाती हैं
एक दूजे को बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा आज के ज़माने में
एकल परिवार सबसे बड़े कारण बनते जा रहे हैं इस मसले का इस ज़माने में
--रोशी



 हाड़ गला देती यह शीतल वयार काटनी मुश्किल यह पूस की रात

गर्मी में कितनी प्रिय लगती जब तन को छूती है यह शीतल बयार
सड़कें पड़ी सुनसान ,बस कभी श्वानों के भौकने की देती सुनाई आवाज़
ठंडी भट्टी में छिपकर रात काट देते निरीह प्राणी ,एकमात्र सहारा होता हर रात
भीषण कोहरा की चादर ने समेट लिया है जनजीवन को अपने आगोश में
दूर तक ना दिखता धुंध मे ,सूरज ने भी मुख मोड़ लिया है इस मौसम में
आसमान से पानी की बूंदे गिरती हैं,बर्फ मानो इकठ्ठा हो उपर आसमान में
रोज़ी -रोटी की जुगाड़ में मजदूर निकलता है घर से इतने नामाकूल मौसम में
--रोशी

शनिवार, 4 जनवरी 2025



विगत कुछ वर्षों से युवा पीड़ी अब धार्मिक ज्यादा होती जा रही है
सपरिवार तीर्थ स्थानों का भ्रमण पिकनिक सरीखा बनता जा रहा है
तीर्थों को अब पर्यटन के साथ जोड़कर नया रूप अब समाज में आ रहा है
यही कारण है कि हर उत्सव पर तीर्थों पर भीड़ नियंत्रण से बाहर हो रही है
पूजा-पाठ अंधविश्वासों में ना पड़कर बच्चे मस्ती के साथ कर रहे हैं
आनंद के साथ देशाटन कर रहे हैं ,जीवन का सम्पूर्ण सुख उठा रहे हैं
पर्यटन को तीथों के साथ जोड़ युवा पीड़ी मंदिरों ,गुरद्वारों के दर्शन कर रही है
सिर्फ मंदिर मस्जिद ही ना जाकर सम्पूर्ण छेत्र भी घूमकर अब युवा आ रहे हैं
--रोशी

 


एक गरीब मजदूर शायद सबसे ज्यादा मेहनत करता है प्रतिदिन
दिहाड़ी रोज़ की सबसे कम ही पाता है वो यह है शायद उसका नसीब
मेहनत के साथ किस्मत का महत्वपूर्ण किरदार होता है जिन्दगी में
किस्मत किसकी चमकेगी और कब ? यह हमारी होता है नियति में
पूरी उम्र कट जाती है कंगाली में ,मेहनत करते करते हालात ना होते तब्दील
लाखों में कोई एक किस्मत का धनी बन पाता है टाटा -अम्बानी जैसा अमीर
मेहनत ,किस्मत ,नियति सरीखी ढेरों चीजें जरूरी हैं एक साथ होना जिन्दगी में
थोड़ा बहुत बदलाव होता हमारे हाथ में बदलने को अपनी हाथ की लकीरों में
--रोशी 


 नव वर्ष में कुछ नया कर दिखाना है ,जीवन में कुछ बदलाव करना है
दोस्तों की गिनती में कुछ और इजाफा करना है ,जिन्दगी में शामिल करना है
हर लम्हा इस बेशकीमती जिन्दगी का खुल कर जीना है ,उसका आनंद लेना है
खुद से जो बन पड़ेगा दूसरों के लिए जरूर करेंगे ,जितना संभव होगा उतना करेंगे
व्यर्थ के विवादों से दूर रहेंगे, खुद के व्यक्तित्व पर पूरा ध्यान केन्द्रित करेंगे
जिन्दगी के बचे हुए लम्हे निज आनंद में गुजारेंगे,शांतप्रिय जीवन गुजारेंगे
जिन्दगी को बेहतर करने की भरपूर कोशिश करेंगे ,सुकून का जीवन जियेंगे
--रोशी


नव वर्ष के आगमन के लिए हम सब हैं बेकरार
पूरे तीन सौ पेंसठ दिन हम सब करते हैं बेसब्री से इंतज़ार
बिगत वर्ष में हमने क्या पाया ,जिन्दगी में कौन हमारी है आया
क्या -क्या गंवाया ?किसका वजूद हमने अपनी जिन्दगी से हटाया
पूरे वर्ष का लेखा -जोखा समझना है बहुत जरुरी भविष्य के लिए
पुरानी गलतियाँ ,तकलीफें ना दोहराएँ अब अपने सुनहरे भविष्य के लिए
हमारा अतीत ही है बेहतरीन शिक्षक हमारे आने वाले कल के लिए
जिन्दगी का पता नहीं जी लो इसको अपनी खुशियों के साथ
जो ख्वाब ,अधूरे बचे है बाकी ठान लो पूरा करने की नव बर्ष के साथ
--रोशी

 


 बेटे भी मासूम होते हैं दिल से ,सिर्फ बेटियां ही नहीं
माँ से अद्भुद जुड़ाव होता है उनका बचपन से
शायद व्यक्त नहीं कर पाते हैं अपने भाव ,अपना प्यार
रसोई में मां का हाथ नहीं बटा पाते हैं ,होते हैं कच्चे इसमें जन्म से
माँ की नई साड़ी ,चूड़ी से सजे हाथ ,माथे पर बिंदिया खूब भाती है उनको
पत्नी को भी उसी रूप में पसंद करते हैं जिस रूप में देखा था माँ को
मां ,बहन की बेहतरी के लिए जुट जाते हैं बचपन से ख़ामोशी के साथ
बेटियों की तरह बेटे भी जुड़े रहते है दिल से परिवार के साथ
--रोशी 


 गरीब ,बेसहारा इंसान हो या जानवर सर्द रात काटना है दूभर
विकट परिस्थिति में कैसे सांसे बरक़रार रखना है कोई इनसे सीखे
हीटर ,अंगीठी से भी जब हड्डियाँ हैं कडकडाती ,यह बेचारे कैसे जीते
सुबह का सूरज तो नसीब वालों को है मिलता ,गर रह गए वो जिन्दा
पूस की सर्द रात इंसान और जानवर दोनों को पड़ती है जिन्दगी पर भारी
नितांत तकलीफदेह होती है शीत लहर ,गुजरती है यह सब पर भारी
लू के थपेड़े इतना ना देते कष्ट, रूह को ना सताते ना होती तकलीफ सारी
--रोशी

 


दोस्ती के रिश्ते अनूठे ,और बेमोल होते हैं
यह रब नहीं बनाता ,यह रिश्ते हम खुद जोड़ लेते हैं
दिल ,दिमाग जब दोनों मिलते हैं हम अपना दोस्त दूंढ लेते हैं
आँख मिलते ही दिल के भीतर की हलचल जान लेते हैं
तत्काल पता लगते ही बेहतरीन समस्या का हल भी दूंढ लेते हैं
दोस्ती का रिश्ता टिका होता है एक रेशम की डोर पर परस्पर
यह धागा अद्रश्य और अनूठा होता है ,भेद ना पा सका कोई आज तक
ना रंग देखे ना जाति,अमीर- गरीब ना देखे ,ना देखे देश परदेस कभी
बस अपनी छवि मिलते ही दोस्त बना बैठते हैं इस दुनिया में सभी
--रोशी 



देश में धर्म के नाम पर त्योहारों की खुशियाँ सिमट रही हैं
धर्मगुरुओं ने निज स्वार्थ के लिए सबको विभाजित कर दिया है
जाति ,धर्म के नाम पर दिल से ,डर से सबको अलग- थलग कर दिया है
हर्षौल्लास सब सिमट कर रह गया है ,धर्म ने सबको बाँट दिया है
क्रिसमस ,ईद ,जन्माष्टमी ,गुरुपर्व जैसे पर्वों का सत्यानाश कर दिया है
मजहब का नाम लेकर गैर धर्मों के लिए इतनी नफरत भर दी है
डर ,खौफ से इंसान एक दुसरे की ख़ुशी में शामिल नहीं हो पा रहा है
क्योँ ना हम इन सबसे ऊपर उठकर एक दूजे की खुशियाँ बांटे
तीज त्यौहार मिलकर मनाएं ,,सर्वधर्म का सम्मान करें ,सबको खुशियाँ बांटे
--रोशी

 


 औकात से बढकर खर्चा ,सिर्फ बड़ा देता है बस जीवन में कर्जा
चादर से जिसने निकाले बाहर पैर ,बेशक हुआ समाज में उसका चर्चा
दावतें उड़ा ,खा -पी चले गए घर को सब ,मर गया वो चुकाते -चुकाते कर्जा
दिखावे की होड़ से परिवार को बचाना हो रहा है आजकल बेहद मुश्किल
बीबी -बच्चे सब भाग रहे रंगीन चकाचौंध के पीछे आँख बंद कर हर पल
ख्वाहिशें बड रहीं इतनी कि समझौते को तैयार नहीं कोई खुद अपने घर में
इंसान का जीना हो गया है मुश्किल आज के दिखावटी ,नकली दुनिया के दौर में
--रोशी 

  कुम्भ है देश विदेश सम्पूर्ण दुनिया में छाया असंख्य विदेशियों ने भी आकार अपना सिर है नवाया सनातन में अपना रुझान दिखाया ,श्रधा में अपना सिर ...