भरम
भरम में थी आई जीती अब तक
एक ढेला फेंका और भरम का जाल टूटा
समेट रखा था जो अब तक दामन में था छूटा
ना रहा कुछ भी बाकी सभी अपनों का सब झूठा
मस्तिक शून्य,सवेदना शून्य हुआ
शरीर और दिल भी टूटा
सभी जगत में था मिथ्या,कौन अपना ? कौन पराया ?
जिसको भी की ना ,उसने था फ़ौरन जबाब पलटा
अपना तो कुछ बाकी ना रहा सभी था उल्टा पुल्टा |
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