माँ
कब बच्चे हो जाते है बड़े और करने लगते है फैसले स्वयं
पता भी ना चलता है रह जाते है स्तब्ध हम
कभी उचित कभी अनुचित,उठा जाते हैं बो कदम
पर हम फ़ौरन भुला जाते हैं और भूल जाते है अपना गम
ये ही तो होता है दिल का और खून का रिश्ता
जो मुआफ कर देता है अपने कोख जायों का हर सितम
माँ तो माँ होती है औलाद दे बेठे चाहे जितने जख्म
मुहँ से दुआ , दिल से प्यार ही निकलता है उसके हरदम
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