उम्मीद
लुटा दिया था उसने अपना सुखचैन उन पर
पर ना कर पाई कभी भी खुश उनको सब कुछ लूटकार
हर लम्हा वो खोजते ही रहे कुछ ना कुछ गलतियाँ
सामने ओढे रहे नकाब शराफत का पर खोदते ही ,
जड़े हमारे वजूद की
और जड़े हिल भी गयी थी काफी हद तक अगर जिंदगी में
ना होती जगह उनकी
प्यार से सींचा,सहारा दिया और नई कोंपल चमकी
ये प्यार ही तो है जिसने हरा कर दिया सूखे ठह को
वरना हम तो छोड़ बैठें थे उम्मीद फिर से उठने की
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें