अबोध
आना उसका जिंदगी में ,हवा के झोके की माफिक
झिंझोड कर चले जाना सर्वस्व उसके वजूद को अपने मुतबिक
भोजन ,भजन और खानपान रहा ना कुछ भी उसके हाथ
खो ही गया था उसका अपना अस्तित्व मजबूर दिल के साथ
माँ ,बाप ,भाई ,बहन कुछ भी ना उसका अपना
बस दिल तो वो हार बैठी थी अपना उसके हाथ ,
क्या सखी ,क्या सहेली ,क्या रिश्ते ,क्या नाते ना थे उसको कुछ भी याद
जब दिमाग वहां से हटता तभी तो उसको रहता कुछ भी याद
आग लगी थी दोनों तरफ दिख रहा था उसका प्रबल प्रवाह
ना थी ज़माने की खबर ,ना डर था घर परिवार की इज्ज़त का
मिलने को आतुर थे वो दोनों बेखौंफ,निडर उसका दिमाग था
पर कहाँ छोडा था उसको इस समाज के भेडियो ने
सफ़ेदपोंशों ने खत्म करके ही छोड़ा उस मासूम जोड़ी को
ईश्वर दे सुकून उनकी रूहों को ,वहां मिला दे दो अबोध बच्चो को....................
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें