रिश्तेनाते
अब मन ना लगता है इस जहाँ में तोड़ दिए सारे रिश्ते नाते
कांच टूटा आवाज़ हुई बरतन गिरा झनाक हुई
पर ये कम्वख्त दिल टूटा किसी को खबर ना हुई
पाकर जिनका साथ थे पले बढ़े इस जहाँ में
तार तार कर दिया रिश्तो का जामा जो पहना था हमने
आत्मा विदीर्ण,शरीर वोझिल और मन है पूरा घायल
रूह है बेचैन कि क्या हुआ एक पल में हुआ सब खत्म मिनटों में
सालो में तिनका तिनका जोड़ बुनी थी रिश्तों की चादर
समय की आंधी आई और उड़ा ले गई चादर कुछ भी
कतरा कतरा बिखर गया और समेट ना पाए हम चाहकर
क्यों?आखिर क्यों?होता है यूँ जो कभी ना चाहते हमसब
यही तो भाग्य की विडम्बना कि होनी तो होती है रहकर
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