शनिवार, 8 जनवरी 2022

संतुलन


अबसाद ,गहन अबसाद में घिर गए थे हम 
अपनों ने ना दिया होता सहारा तो भर ही गए थे हम
अपनों ने ही धकेला था हमे अवसाद की गहरी खाई में
और अपनों ने ही निकला,और नेक सलाह सुझाई 
मानसिक संतुलन था गड़बढ़ाया और दिल था बहुत घबराया 
अंधेरा ही अंधेरा था और देता था कुछ दिखाई 
रिश्तो की गुत्थी उलझ गई थी इतनी कि सिरा भी ना आता पकड़ाई
पर क्या करे जीना भी तो यहीं हैं इस मकडजाल में आत्मा भी घबराई 
हम खुद ही इस सबके जिम्मेदार यही बस अब समझ आई 
ना करते हम अपने आसपास इतनी गंदगी करते ,
करते रहते हमेशा सफाई
सच्चे मित्र,सगे सबंधी और अपनों की इसी अवसाद ने पहचान कराई
अब ना घिरेंगे इस भंवर में जीने की है कसम खाई
पर किनारे तक आते आते पिछली सारी भूली बिसराई
फिर तैयारी कर ली थी हमने रिश्तो में उलझने की
दावानल में घिरने की अब फिर से बारी आई 
कोई ना है विकल्प इस मायाजाल का बहुभान्ति है अजमाई 


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