अपयश ,ख्याति ,प्रसिधि भी मां के गर्भ से ही विधाता लिख भेजता है
ढेरों अक्लमंदों ,काबिलों को पाया इतिहास में धूल फांकते जीवन भर
चादक्य ,विदुर ,कर्ण सरीखे धुरंधरों को मिल ना सका उपयुक्त स्थान जीवन भर
सीता भटकी वन -वन,द्रोपदी अर्जुन को व्याही पर पांच की पत्नी रही जीवन भर
बुद्धि,विवेक रह जाते धरे ,कठपुतली की माफिक अभिनय सब करते खुद बा खुद
जीवन की डोर है उसके हाथ जो है उसने लिखा किस्मत में होगा वही खुद बा खुद
--रोशी
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